हे भारत,
अब उठो तुम
सींचने को,
बंजर पड़ी प्यासी धरा,
अतृप्त जन विक्षुब्ध मन,
बदहाल तन देखो जरा ...
हे भारत,
अब उठो तुम
जीतने को,
असहाय एकाकी प्रत्येक मन,
धर्म रक्षण राष्ट्र अर्पण,
संहार हो यदि, ध्येय बन ...
हे भारत,
अब उठो तुम
लांघने को,
जीर्ण शीर्ण लघु सीमाएँ,
जाति धर्म रंग भेद भाव,
ऊंच नीच की धारणाएँ ...
हे भारत,
अब उठो तुम
जानने को,
कटु सत्य भी पहचानने को,
दिग्भ्रमित असहाय पथिक,
धर्म का पथ मानने को ...
हे भारत,
अब उठो तुम
हारने को,
स्वार्थ अहं नैराश्य भरा,
स्वपोषण मात्र न ध्येय रहे,
वंचित रहे न बसुंधरा ...
बहुत बहुत बढ़िया नीरज....
ReplyDeleteएकदम अलग ढंग होता है आपकी कविताओं का..
एकदम परपक्व...
बहुत आगे जाओगे...
अति सुन्दर |
ReplyDeleteशुभकामनाएं ||
dcgpthravikar.blogspot.com
भारत के युवा वर्क को अब जागने का समय है ... आह्वान करती सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
bhart to tab hi uthega jab ham sab milkar uthyenga .sarthak post.
ReplyDeletebahut badiyaa deshbhakti se paripoorn rachanaa .bahut badhaai aapko.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२२) में शामिल की गई है /कृपया आप वहां आइये .और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका सहयोग हमेशा इसी तरह हमको मिलता रहे यही कामना है /लिंक है
http://hbfint.blogspot.com/2011/12/22-ramayana.html