बनाते हैं हम मिटाते
हो तुम,
जगाते हैं हम सुलाते
हो तुम।
छीना झपटी में माहिर होते जो हैं,
उन्ही को ही बर्दी चढाते हो तुम।
खाकी कहीं पर कहीं
पर खद्दर,
बदल कर लिबास खाते हो तुम।
रोटी रोटी चिल्ला बड़े
जोर से,
भूखों को सपने दिखाते हो तुम।
बनाते हो तुम कुछ तो कानून ऐसे,
जो तोड़े उन्ही को
बचाते हो तुम।
लूटो निवाले मुँह से हमारे हम,
कह दें तो सूली चढाते हो तुम।
देने को कुछ कागजों में ही दे दो,
जिन्दा ही मूरत लगाते
हो तुम।
बंदूकों के साये में जीते हो रोज,
उन्हीं को खोखला बनाते हो तुम।
भूखे नंगे बदन को
देखे बिना ही,
कपड़ों पर कपडे चढाते
हो तुम।
कीचड सना तुमने भारत न देखा,
महलों के ढांचे बनाते
हो तुम।
सिसकती रही है ये
धरती मगर,
लूटते लुटाते ही जाते हो तुम।
हम बचाते रहेंगे ये जमीं आसमां,
जब जब
साजिश कतल की कराते हो तुम।