Thursday, November 22, 2012

अब चोटें दिल दुखातीं नहीं Ab Chotein Dil Dukhati Nahin


इस ज़माने की चोटें, अब दिल दुखातीं नहीं,
ये रूठीं बदलियाँ आह को आँसूं बनाती नहीं।

मेरी जिंदगी बस ओस की एक बूँद है जैसे,
ये प्यास बढाती तो है, पर  बुझाती  नहीं।

हम डूबे झीलों में थे, पर मिला  कुछ नहीं,
वो दोनों नीलीं  तो थीं, पर  समंदर  नहीं।

जलाया एक चिराग था, उस चाँद के लिए,
अब उस दिए में बची, वही एक बाती नहीं।

ये चल रही  नाव, एक दिन  डूबेगी जरुर,
इन इंतजारों  में अब, मौज  आती  नहीं।

कुछ यादों को उस दिन दफ़न कर दिया था,
अब नीदें आती तो हैं, सपने  दिखाती नहीं।

मुस्कुराता चेहरा, लादने की  है आदत मुझे,
जिंदगी के चुटकुलों की शोखियाँ हंसाती नही।

तारे टूट कर उस दिन, कुछ गिरे इस कदर,
लगा वो भी रोती तो हैं शायद जताती नहीं।

Wednesday, November 21, 2012

बासन्ती रंग लेकर निकलना था Basanti Rang Lekar Nikla Tha


निकल पडे पर असरार  संग लेकर निकलना था,
साथ धरती का बासन्ती रंग लेकर निकलना था।

आँख बन्द कर समर्थन तुम्हारा हमसे नही होता,
तुम्हारा साथ देने को घाव दिल पे भी लगना था।

बर्फीले हिमालय का पिघलना असम्भव हो, न हो,
मुश्किल भारत की कई सालों की नींद खुलना था।

हम चल पडे पुरजोर  सपनों के  महल की ओर,
चुभे काटों ने कहा चप्पल पहनकर निकलना था।

टिकाने को महल अपना, न मिली दो गज जमीं,
तो लगा हमें तो जमीं के  आस पास उडना था।

चार शब्द चुनकर लगा, बुन लिया इक आसमाँ,
पल भर टिक सका न, फ़ना आखिर में होना था।

Monday, November 19, 2012

लम्हें Lamhein


ये लम्हें तोड  देते हैं, कभी ये  जोड देते हैं,
बेहद शख्त जान हूँ, जो जिन्दा छोड देते हैं।

लम्हें सब्ज सुर्ख रंगी, कटारों  से कतर कर,
रंगीन पंख  सपनों के, हवा में छोड देते हैं।

लम्हें देखकर  गमगीन, फ़रियाद दुनिया की,
जेहन में बहुत गहरे से, खङ्जर भोंक देते हैं।

लम्हें तोडकर दिल, फ़िर  सिलकर करीने से,
जमाने की तडप भर,जिन्दगी झकझोर देते हैं।

लम्हें खुदगर्ज टुकडे, वक्त की रूखी डगर के,
एक पल हंसा, एक बूँद आँख से, रोल देते हैँ।

लम्हें गीले आसमानों को भिगोकर फ़िजाओं में
हंसकर जीने का नशा, जेहन में घोल देते हैं।

लम्हें डूबते  इन्सान को, रूठते  भगवान को,
एक तिनके सा महज प्यार के दो बोल देते हैं।

लम्हें रीत दुनिया की, अधूरी प्रीत दुनिया की,
एक बच्चे की हँसी सा, निर्दोष  मोड  देते हैं।

लम्हें आखिरी पल, चिर शन्ति का बरदान दे,
मटमैले शून्य को फिर, शून्य से जोड देते हैं।

Tuesday, November 6, 2012

पिता: एक आकाश Pita: A Sky


कुछ सर्द लम्हों  की किताबें, जिन्दगी  गाती रही,
उसके बाल भी पकते रहे और  झुर्रियां चढती रही।

फ़िर चाहे रात दिन  खटता रहा हो  बाप फ़िर भी,
उसकी भावना हर कदम केवल अवहेलना पाती रही।

उसने स्वप्न अपने तुम्हारी नींव में दफ़ना दिये हैं,
ज्यों ज्यों उठते गये हो तुम उसकी कद्र घटती रही।

उसकी बढती रही हो  उम्र चाहे उम्र भर  फ़िर भी,
हर दिवस उसकी उम्र से  बस जिन्दगी घटती रही।

अपनी पी गया वो ख्वाहइशें दाल रोटी में मिलाकर,
पर तुम्हारी जेब में चाकलेटों की मिठास बढती रही।

बैल सा कोल्हू में जुत तपकर नापता रहता जमीं वो,
हर पल तुम्हारी जीत को कदमों की धरा बढती रही।

वो अर्थ लेकर जिन्दगी के  तुम्हारी चोंच में देता रहा,
हर दिन हर रात हर ठौर सर पे छत तेरी बढती रही।

अब आसमानों ने भले ही अर्थ अनगिन गढ लिये हों,
पर पिता इस शब्द से ही, दुनिया आसमां बुनती रही।

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