Friday, April 25, 2014

मुक्तक - भगत सिंह के नारे

मुक्तक भगत सिंह के नारे

जब जब आँखें होतीं बदरा, भाव मेरे बूँदें बन आते,
जब भी बरसा मीठा अम्बर, श्वर मेरे कविता बन जाते,
जीवन की रागनियाँ बजती, और नील गगन में तारे,
सपनों के सरगम पर नाचें, भगत सिंह के नारे।

-- नीरज द्विवेदी 
-- Neeraj Dwivedi

Thursday, April 24, 2014

मुक्तक - तेरे बिन

मुक्तक - तेरे बिन

तुझको जीतूँ लक्ष्य है मेरा, तुझसे जीत नहीं चहिए,
तेरी जीत में जीत हमारी, तेरी हार नहीं चहिए,
तू मेरा प्रतिमान किरन है, जो मैं सूरज हो जाऊँ,
तू मेरा सम्मान किरन है, जो मैं सूरज हो जाऊँ,
तेरे बिन उगने ढलने का भी, अधिकार नहीं चहिए,

तेरे बिन जीने मरने का भी, अधिकार नहीं चहिए।

नीरज द्विवेदी
- Neeraj Dwivedi

Tuesday, April 8, 2014

मैं, तुम और हम Main Tum aur Hum

मैं, तुम और हम होने का एहसास

उस वक्त
जब हम, हम नहीं थे
मैं और तुम थे,

उस वक्त
जब आसमां के टुकड़े टुकड़े हो चुके थे
और हर टुकड़ा बस
नीर होने को व्याकुल था
अश्रु होने को उत्सुक था

उस वक्त
जब संशय की कलुषित चादर
अरुणिमा की नेह आच्छादित किरणों को
मुझ तक पहुँचने से रोक रहीं थीं,

जानती हो
उस वक्त तुम्हारा होने की तड़प से
मुझे एहसास हुआ
कि मैं
अब मैं नहीं रहा …
और मुझे विश्वास था
कि तुम, तुम नहीं रही हो …
n  नीरज द्विवेदी
n  Neeraj Dwivedi

Tuesday, April 1, 2014

समर्पण Samarpan

समर्पण

मैंने कभी नहीं चाहा
कि तुम बदलो कभी
रत्ती भर भी
मेरे लिए,

हाँ बुरा लगा है मुझे कई बार
बताया भी तुम्हे
खुद को समझाया भी
कि इस बात का
अगली बार से मैं बुरा नहीं मानूँगा,

इधर तुम हो
कि दोबारा मौका ही नहीं देती
बुरा मानने का,

हर बार बदल जाती हो
थोडा सा
मुझे हरा जाती हो

हर बार मुझे जिता कर।

- Neeraj Dwivedi

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