Monday, October 20, 2014

शत प्रतिशत Shat Pratishat

शत प्रतिशत

तुम होती हो
तो ये सच है

कि सब कुछ
मेरे मन का नहीं होता
मेरी तरह से नहीं होता
मेरे द्वारा नहीं होता
मेरे लिए नहीं होता

ये भी सच है
कि मैं कवितायेँ नहीं लिख पाता
किताबें नहीं पढ़ पाता
ज्यादा काम नहीं कर पाता
मैं मशीन नहीं बन पाता

दूसरे शब्दों में
मैं वो सब कुछ नहीं कर पाता
जिससे ये सिद्ध हो कि मैं हूँ
ये सिद्द हो कि मै जिन्दा हूँ

पर
पर जब तुम होती हो
तब मैं भी होता हूँ
और जीवित होता हूँ
शत प्रतिशत।

--  नीरज द्विवेदी

Tum hoti ho
to sach hai

ki sab kuch
mere man ka nahin hota
meri tarah se nahin hota
mere dwara nahin hota
mere liye nahin hota

Ye bhi sach hai
ki main kavitayein nahin likh pata
kitabein nahin padh pata
jyada kaam nahin kar pata
main machine nahin ban pata

Dusre shabdon mein
main vo sab kuch nahin kar pata
jisse ye siddh ho ki mainn hun
ye siddh ho ki main jinda hun

par
par jab tum hoti ho
tab main bhi hota hun
aur jeevit hota hun
shat pratishat.

--  Neeraj Dwivedi

Friday, October 17, 2014

तुम्हारे बिना भी Tumhare Bina Bhi

मैं खुश रहता हूँ,
आज कल भी
तुम्हारे बिना भी

पर तुम्हे पता है
कि मुझे कितनी हिम्मत जुटानी पड़ती है
कितनी जद्दोजेहद करनी पड़ती है
कितनी मेहनत करनी पड़ती है
कितना समझाना पड़ता है
बरगलाना पड़ता है खुद को
कितना सचेत सावधान रहना पड़ता है
हर पल हर क्षण

अपने सपाट सर्द चेहरे पर
मुस्कान की झुर्रियां लाने के लिए
एक हँसता हुआ मुखौटा लगाने के लिए
और उन्हें बरक़रार रखने के लिए

मुझे ये सब नहीं करना पड़ता
अगर तुम होते 
मेरे साथ। 

n  नीरज द्विवेदी
n  Neeraj Dwivedi

Wednesday, October 15, 2014

एक वृक्ष की शाख हैं हम Ek Vriksh Ki Shakh Hai Ham

एक वृक्ष की शाख हैं हम

साथ हैं हम, हाथ हैं हम,
एक वृक्ष की शाख हैं हम,

विंध्य हिमाचल से निकली जो,
उस धारा की गति प्रवाह हम,
मार्ग दिखाने इक दूजे को,
बुजुर्ग अनुभव की सलाह हम,
फटकार हैं हम, डांट हैं हम, एक वृक्ष की शाख हैं हम।

बचपन का उत्साह हम ही हैं,
खेल कूद की हम उमंग हैं,
जीवन के हर एक कदम पर,
जोश विजय की हम तरंग हैं,
राह बताते हाथ हैं हम, एक वृक्ष की शाख हैं हम।

हम पंजे की अंगुलियाँ हैं,
इन्द्रधनुष के रंग हैं हम,
जीवन की हर उथल पुथल में,
कदम कदम पर संग हैं हम,
पूर्ण चन्द्र की रात हैं हम, एक वृक्ष की शाख हैं हम।

हम धरती का धर्य लिए हैं,
आसमान सा बड़ा लिए दिल,
साथ साथ बढ़ने निकले हैं,
हाथ हाथ में होकर इकदिल,
इक दूजे की आँख हैं हम, एक वृक्ष की शाख हैं हम। 
साथ हैं हम, हाथ हैं हम, एक वृक्ष की शाख हैं हम

-- नीरज द्विवेदी
-- Neeraj Dwivedi

Tuesday, October 14, 2014

क्षणिका - जल्दी बीतो न Jaldi Beeton Na

क्षणिका - जल्दी बीतो न

जल्दी बीतो न,
दिन,
रात
और दूसरे समय के टुकड़ों ...

तेज चलो न
घडी की सुईयों
धक्का दूँ क्या ...

ये टिक टिक
जल्दी जल्दी टिक टिकाओ न …

तुम्हारा क्या जाता है?

-- नीरज द्विवेदी



Jaldi beeto n,
din,
raat
aur dusre samay ke tukdaon ...

Tej chalo n
ghadi ki suiiyon
dhakka dun kya ...
Ye tik tik
jaldi jaldi tiktikao na ...

Tumhara kya jata hai?


-- Neeraj Dwivedi

Sunday, September 7, 2014

जब समझ जाओ, तब तुम मुझको समझाना Jab Samajh Jao, Tab Tum Mujhko Samjhana

तू पिघल रही थी
आँखों से
मोटे मोटे आँसू
ढुलक रहे थे गालों पर
बोझ लिए मन में पहाड़ सा
बैठ रहा था जी पल पल

और दो आँखें देख रहीं थीं
पाषणों की भांति अपलक
पिघल रहा था उनमें भी कुछ
भीतर भीतर
ज्यों असहाय विरत बैठा हो कोई
सब कुछ पीकर

जो बीत रहा वो करे व्यक्त
शब्दों में चाह अधूरी हो
मन सिसक सिसक कर रोता है
जब चुप रहना मज़बूरी हो

हाँ सच है
सच है सबका आना जाना
और सरल बहुत है
औरों को ये समझाना ….

चलो जरा सा, मैं तुमको समझाता हूँ
जब समझ जाओ, तब तुम मुझको समझाना …………

n  नीरज द्विवेदी
n  Neeraj Dwivedi


Thursday, August 28, 2014

तन्हाईयाँ Tanhayiyan

मेरी तन्हाईयाँ
आज पूछती है मुझसे

कि वो भूले बिसरे हुए गमजदा आँसू
जो निकले तो थे
तुम्हारी आँखों की पोरों से
पर जिन्हें कब्र तक नसीब नहीं हुयी
जमीं तक नसीब नहीं हुयी

जो सूख गए अधर में ही
तुम्हारे गालों से लिपट कर
तुम्हारे विषाद के ताप से

वही आसूँ जिन्होंने जिहाद किया था
अपने घरौंदों से निकल कर
स्वयम को बलिदान किया था
तुम्हारे अंतस को, तुम्हारे जेहन को
इत्ता सा ही सही, सुकूँ देने के लिए,

याद है न
गर याद है तो बताओ
तुम्हे सुकून ही चाहिए था न ?
…………………… मिला क्या ??

-    नीरज द्विवेदी

-    Neeraj Dwivedi

Saturday, August 23, 2014

गीत - तरस रहीं दो आँखें Taras Rahin Do Ankhein

तरस रहीं दो आँखें बस इक अपने को

मोह नहीं छूटा जीवन का,
छूट गए सब दर्द पराए,
सुख दुख की इस राहगुजर में,
स्वजनों ने ही स्वप्न जलाए,
अब तो बस कुछ नाम संग हैं, जपने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपने को।

जर्जरता जी मनुज देह की,
पर माटी से मोह न टूटा,
अपने छूटे सपने टूटे,
किन्तु गेह का नेह न छूटा,
फिर फिर जीतीं करुण कथाएँ, कहने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपने को।

खोटा सूना अंधियारापन,
कब चाहा था आवारापन,
सब कुछ सौपा जिन हाथों में,
उनसे पाया बंजारापन,
चिंतित हैं कुछ रह गए काम, करने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपने को

उड़ा एक दिन प्राण पखेरू,
फूट गयी माटी की गागर,
छोड़ छाड़ सब देह धरम,पर
उस माँ ने खोया क्या पाकर,
मोह रह गया बस लावारिस, जलने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपने को।

-    Neeraj Dwivedi

-    नीरज द्विवेदी

Tuesday, August 19, 2014

चलो मिलाकर हाथ चलें Chalo Milakar Hath Chalein

चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें,

आसमान में फर फर देखो,
फहर रहा भगवा ध्वज अपना,
कर्म रहा पाथेय हमारा,
रचा बसा है बस इक सपना,
एक हो हिन्दुस्तान हमारा, मात्र यही प्रण साध चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

अडिग हमारी निष्ठा मन में,
लक्ष्य प्राप्ति की कोशिश तन में,
तन मन धन सब कुछ अर्पण है,
संघ मार्ग के दुष्कर रण में,
केशव के पावन विचार को, ध्येय मान दिन रात चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

दुश्मन की कातर ध्वनियों में,
ओज विजय का श्वर साधें हम,
विघटित भारत के टुकडों कों,
सिलने के पक्के धागे हम,
भगवा ध्वज लेकर हाथों में, करें शत्रु संहार चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

जाति पंथ के भेद भाव को,
संघ नही स्वीकार करेगा,
राष्ट्र धर्म पर आंच न आए,
हर मन में विश्वास भरेगा,
धरती के निर्मल आन्चल पर, बन गंगा की धार चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

हिन्दु राष्ट्र के स्वप्न सजग में,
अपना गौरव मान न भूलें,
विश्वगुरू हो सबल राष्ट्र हो,
करना है बलिदान न भूलें,
देश धर्म के कठिन मार्ग पर, हो चाहें अंगार चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

-    नीरज द्विवेदी
-    Neeraj Dwivedi


Tuesday, August 5, 2014

मुँहबंदी का रोजा Munhbandi Ka Roja


मेरठ पर न बोल सके तो जरा सहारनपुर पर बोलो,
जबरन धर्म बदलने की इस कोशिश पर ही मुँह खोलो,
क्या चुप ही रहोगे जब तक पीड़ित रिश्तेदार न होगा,
समय यही है अरे सेकुलर मुँहबंदी का रोजा खोलो।

-- नीरज

Wednesday, July 9, 2014

तुम रूठ जाओगी Tum Ruth Jaogi

हाँ मनाऊँगा,
मनाऊँगा न
तुम्हें तो मनाना भी पड़ेगा
तुमसे निभाना भी पड़ेगा

तुम्हें दुनिया से
हर मुश्किल से
हर दर्द से
हर आह से
हर बुरी नजर से छिपाना भी पड़ेगा

अपने जेहन में
अपनी स्वांसों में
अपनी आँखों में
अपने ख्वाबों में
अपनी रातों में
अपने शब्दों में
अपने गानों में
अपनी नज्मों में
अपनी सिहरन में बसाना भी पड़ेगा

तुम रूठ जाओगी
तो मुझसे मेरा अहम् नहीं रूठ जाएगा
मेरे जीने का वहम नहीं टूट जाएगा
मेरी साँस नहीं रूठ जाएगी?

-- नीरज द्विवेदी

-- Neeraj Dwivedi

Saturday, July 5, 2014

उस एक दिन Us Ek Din

एक दिन मैं चल पड़ूँगा,
दूरियाँ कुछ तय करूँगा।

समय की झुर्री में संचित, उधार का जीवन समेटे,
इस धूल निर्मित देह में ही, चाह की चादर लपेटे,
कुछ जर्जर सुखों की चाह में, यौवन लुटाकर राह में,
नि:शब्द शाश्वत सत्य को, चिरशांति को, मैं भी बढूँगा,
एक दिन मैं चल पड़ूँगा,

चाहे राह मेरी रोकने को, गिर रहा हो आसमां,
या ढूंढ़ कर तारों से लाए, चाँद एक सुन्दर शमां,
अथवा धरा ही कंपकंपी देकर, मुझे धमका सके,
पर मैं अडिग विश्वास ले, चलता रहा, चलता रहूँगा,
एक दिन मैं चल पड़ूँगा,

न तब सुखों की चाह होगी, न ही दुखों की आह किंचित,
अग्निरंजित मृत जरा में, न रह सकेगा भाग्य संचित,
उस शास्त्र वर्णित लोक के, परमेश्वरीय आलोक में,
होकर अकिंचन भी मगर, ऐश्वर्यशाली बन रहूँगा,
एक दिन मैं चल पड़ूँगा,

मैं टूट छोटे से कणों में, लाल लपटों में धुएँ में,
इस सारगर्भित बसुंधरा के, नीर में अरु अश्रुओं में,
और बिखर कर चहुंओर, किंचित भावना के जोर से,
मैं मूर्ति पाकर आँसुओं सी, ओस बन कर गिर पडूँगा,
एक दिन मैं चल पड़ूँगा,

मैं सज सँवर आरूढ़ हो, इस काल के गतिमान रथ पर,
आंशिक गगन को साथ लेकर, बढ़ चलूँगा अग्निपथ पर,
कर मोह के वो पाश खंडित, छोड़ तन ये भाग्य मंडित,
इस लोक से उस लोक तक की, दूरियाँ मैं तय करूँगा,
एक दिन मैं चल पड़ूँगा,
दूरियाँ कुछ तय करूँगा।
n  नीरज द्विवेदी
n  Neeraj Dwivedi

Saturday, June 14, 2014

साँझ और समंदर Sanjh Aur Samandar

धूप से
एक रेशा खींचकर
लपेटना शुरू किया
तो साँझ की शक्ल में
रात आ गयी

उनके साथ
बीते पलों को
समेटना शुरू किया
तो समंदर के पहलू में
बाढ़ आ गयी

तुम्हे पता है
साँझ और समंदर का क्या रिश्ता है
मुझे तो नहीं पता
पर ये जरूर पता है
साँझ आने पर समंदर में उफान जरूर आता है …
उसके भीतर एक तूफान जरूर आता है … 
n  Neeraj Dwivedi

Wednesday, May 28, 2014

क्षणिका - गुलाबी रंग के रिश्ते Gulabi Rang ke Rishte


बहुत नाजुक से होते हैं
गुलाबी रंग के रिश्ते
मगर
भरोसे के सहारे की
जरूरत तो

यहाँ हर रंग को होती है।        -- नीरज द्विवेदी (Neeraj Dwivedi)

एक लत Ek Lat


मेट्रो भी अजीब है
जितनी ज्यादा
बेतरतीब आवाजें सुनाई देतीं हैं
ज्ञान गंगाएँ
उतना ही शांत हो जाता हूँ मैं,

जितनी ज्यादा भीड़ मिलती है
अनजान लोगों की
अनभिज्ञ चेहरों की
उतना ही अकेला हो जाता हूँ मैं,

जैसे ही अकेला होता हूँ
शांत होता हूँ
तुम आ जाते हो
ख्यालों में,

बहुत जिद्दी हो
कहीं कभी अकेला छोड़ते ही नहीं
एक लत बन गए हो तुम।

n  नीरज द्विवेदी
n  Neeraj Dwivedi

Tuesday, May 27, 2014

क्षणिका - एक कविता Ek Kavita


आज एक कविता लिख रहा हूँ तुम पर,
बाद में कभी
पढना इसे
और मुझे भी …

n  नीरज द्विवेदी
n  Neeraj Dwivedi

Sunday, May 25, 2014

खिलखिलाहट Khilkhilahat


बहुत कुछ लिखा है तुमने
मेरी हथेली पर
रंगीन कूचियों से

छितराए हैं रंग
मुस्कुराते हुए
खिलखिलाते हुए
गुनगुनाते हुए 

चढ़ रही है मेहँदी भी
बाखबर
अपने एहसास लिया
शर्माते हुए
छटपटाते हुए
झिलमिलाते हुए

जानती हो
कहीं कहीं
चुभन भी अगर हुयी होगी
तो पता नहीं चला मुझे
मैं तुम्हारी

खिलखिलाहट ही देखता रह गया।    -- नीरज द्विवेदी (Neeraj Dwivedi)

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मैं खता हूँ Main Khata Hun

मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ   इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...