Monday, December 12, 2011

अब उठो भारत


हे भारत,
अब उठो तुम सींचने को,
बंजर पड़ी प्यासी धरा,
अतृप्त जन विक्षुब्ध मन,
बदहाल तन देखो जरा ...

हे भारत,
अब उठो तुम जीतने को,
असहाय एकाकी प्रत्येक मन,
धर्म रक्षण राष्ट्र अर्पण,
संहार हो यदि, ध्येय बन ...

हे भारत,
अब उठो तुम लांघने को,
जीर्ण शीर्ण लघु सीमाएँ,
जाति धर्म रंग भेद भाव,
ऊंच नीच की धारणाएँ ...

हे भारत,
अब उठो तुम जानने को,
कटु सत्य भी पहचानने को,
दिग्भ्रमित असहाय पथिक,
धर्म का पथ मानने को ...

हे भारत,
अब उठो तुम हारने को,
स्वार्थ अहं नैराश्य भरा,
स्वपोषण मात्र न ध्येय रहे,
वंचित रहे न बसुंधरा ...

6 comments:

  1. बहुत बहुत बढ़िया नीरज....
    एकदम अलग ढंग होता है आपकी कविताओं का..
    एकदम परपक्व...
    बहुत आगे जाओगे...

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  2. अति सुन्दर |
    शुभकामनाएं ||

    dcgpthravikar.blogspot.com

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  3. भारत के युवा वर्क को अब जागने का समय है ... आह्वान करती सुन्दर रचना ..

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  4. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  5. bhart to tab hi uthega jab ham sab milkar uthyenga .sarthak post.

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  6. bahut badiyaa deshbhakti se paripoorn rachanaa .bahut badhaai aapko.


    आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (२२) में शामिल की गई है /कृपया आप वहां आइये .और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका सहयोग हमेशा इसी तरह हमको मिलता रहे यही कामना है /लिंक है

    http://hbfint.blogspot.com/2011/12/22-ramayana.html

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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