Wednesday, October 24, 2012

जीवन - एक तारा Jeevan - ek tara


जीवन अनजानी  राहों पर  चलता एक  तारा है,
कब टूट  गिरे मर  जाये पर  सबको  प्यारा है।

नहीं दिशा का ज्ञान जरा भी,
नहीं ज्ञात है  लक्ष्य देह का,
नहीं पता विस्तार समय का,
नहीं सत्य अनुमान नेह का,
पर इन्द्रधनुष रंगीं सपनों का अनछुआ किनारा है।
जीवन अनजानी  राहों पर  चलता एक  तारा है,
कब टूट गिरे  मर जाये  पर  सबको  प्यारा है।

ओस सदृश खुशियों सी बूंदे,
किस पल हो जायें छूमन्तर,
टूट पड़े किस पल पर्वत सा,
कोई दुःख हो विह्वल अंतर,
पर गोरी काली गंगा यमुना की अविरल धारा है।
जीवन  अनजानी राहों पर  चलता एक तारा है,
कब टूट गिरे  मर जाये  पर सबको  प्यारा है।

कभी भाव  भरे होते हैं  आंसू,
फिर शब्दों का ही करते मंचन,
क्षण भर के बोझिल जीवन का,
तब भार उठाते  अश्रु अकिंचन,
पर जिस पल जीता उस पल में ही हरदम हारा है।
जीवन अनजानी  राहों पर  चलता  एक तारा है,
कब टूट गिरे  मर जाये  पर सबको  प्यारा है।

Wednesday, October 17, 2012

मैं स्वप्न देखता हूँ हर पल Main Svapn Dekhta hun Har pal


मैं स्वप्न देखता हूँ हर पल, अब मिटे उदासी के बादल,
पर पल में हो जाए छूमंतर, ऐसी  धरती की  पीर नहीं।

विंध्य हिमाचल की चोटी से, बहते गंगा जल से सिंचित,
पश्चिमी थपेड़ों से बिखर जाए, ये रिश्तों की जंजीर नहीं।

हर गंगा यमुना के जल में, अब न हो नफरत का विषधर
मैं चाहूँ जो सब पा जाऊँ, शायद ऐसी  मेरी तक़दीर नहीं।

दो चार वेदेशी शासक आकर, कर  देंगे तेजस  लुप्तप्राय,
चन्दन भावों  से रची बसी, धरती  इतनी कमजोर  नहीं।

मानापमान गंगाजल सा पीकर, निश्चल बैठा हो नीलकंठ,
बह जाये संयम का हिमगिरी, बारिश इतनी घनघोर नहीं।

जब भूगर्भ बदलते हैं नक़्शे, तब मरते जीते हैं  देश निरे,
मिट जाये समय की चोटों से, भारत इतना कमजोर नहीं।

जिस माँ ने झेला हो छाती पर, अपनी कन्याओं के जौहर,
वो धरती बंजर  हो जाये, तेरी नफरत में इतना जोर नहीं।

Wednesday, October 10, 2012

मरते हुये दीप की आशा Marte Huye Deep Ki Asha


इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

निःशब्द हवाएँ व्याकुल अंकुर,
शब्दों के इस बहिर्जाल में,
भाव हुये सुने क्षणभंगुर,
एक आर्द आह की करुणिक भाषा
चल लेकर भाग चलें।
इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

वीर शिवा प्रताप से पोषित धरती,
अहिंसक प्रलाप से वीर्य हीन हो,
खद्दर की अंध गुलामी करती,
अब देशधर्म की सच्ची परिभाषा,
चल लेकर भाग चलें।
इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

ये कैसा जिहाद है कलमों का,
बिकने की जब होड़ लगी है,
तब अद्भुत प्रलाप है कलमों का ,
किंचित खुदरे पन्नों की अभिलाषा,
चल लेकर भाग चलें।
इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

शायद अंगड़ाई लेता है भारत,
अब जान रहा है धीरे धीरे,
क्या पाया क्या लुटा है अब तक,
उत्सुक भारत की अभिनव जिज्ञासा,
चल लेकर भाग चलें।
इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

Sunday, October 7, 2012

देश अपना मर रहा है Desh Apna Mar raha hai


चल रही शब्दों  की  कोशिश, अर्थ  देखो डर रहा है,
तुम मगर  समझे न समझे, देश अपना मर रहा है।

कुछ कार्टूनों की नजर में, संविधान सड़ता जा रहा है,
चल पड़े कुछ  कदम जब से, देश  बढ़ता जा रहा है।

अब तो खोलो  आँख, फिर देख लो शीशा चमन का,
मौन चिलचिलाती  धूप में, हाल ये अपने वतन का।

यदि रक्त सिंचित हैं शिराएं, तो उठो अब नौजवानों,
अन्न साहस  का उगाओ, न्याय से वंचित किसानों।

ये देश  देखो थक रहा है, सत्य का  मरघट रहा है,
अब अथक  उत्साह  लेकर, शब्द आगे  बढ़ रहा है।

साथ जीना  हो तो आओ, साथ मरना हो तो आओ,
या फिर रहो असहाय वंचित, कायरों के गीत गाओ।

Thursday, October 4, 2012

तब तक भाग्य नहीं बदलेगा Tab tak bhagy nahi badlega


जब तक  भारत का  आँसू, बस केवल  आँसू बना रहेगा,
जब तक  आर्द भाव का  झोंका, केवल झोंका बना रहेगा,
जब  तक  भारत का  टुकड़ा, केवल टुकड़ा है  भूखंडों का,
जब तक  भारत को  याद नहीं, जौहर अपने  भुजदंडों का,
जब तक स्वप्न नहीं टूटेगा, इस घर का इसके घर वालों का,
तब तक  भाग्य नहीं  बदलेगा, भारत का  भारतवालों का।

जब तक धरती पर गिरे स्वेद का, वर्ण नहीं रक्तिम होगा,
जब तक छाती पर लगे घाव का, दर्द नहीं दिल पर होगा,
जब तक  भारत पर  इटली के, शागिर्द  चलाएंगे  शासन,
जब तक  भारत पर  थुपा रहेगा, चोरों का ये  अनुशासन,
जब तक  अर्थ नहीं  समझेगा, मिट्टी के सरल सवालों का,
तब तक  भाग्य नहीं  बदलेगा, भारत का  भारतवालों का।

जब तक  भारत का अशोक, बस एक  निहत्था बना रहेगा,
जब तक युग ऋषियों का दल, वेतनभोगी जत्था बना रहेगा,
जब तक  समर्थ गुरु  रामदास, तलवार  नहीं  सिखलाएंगे,
जब तक  भारत के  नौनिहाल ही, शिवा नहीं  बन जायेंगे,
जब तक चाणक्य नहीं जागेगा, इस धरती पर मतवालों का,
तब तक  भाग्य नहीं  बदलेगा, भारत का  भारतवालों का।

जब तक भामा  इस धरती के, बस अपना  पेट सजायेंगे,
जब तक  चांदी के  महल  बना, सोने से  भरते  जायेंगे,
जब तक बन्दर होगा निर्मूल नहीं, खद्दर कायर पाखंडों का,
जब तक  छाती में तेज  नहीं, होगा परमाणु  बिखंडों का,
जब तक  विरोध केवल  विरोध है, विचारहीन सवालों का,
तब तक  भाग्य नहीं  बदलेगा, भारत का  भारतवालों का।


जब तक भारत की माओं को, केवल परिवार दिखाई देता हो,
जब तक नुक्कड़ चौराहों पर, मारो काटो का शोर सुनाई देता हो,
जब तक चुने हुए धन प्रतिनिधियों की, पूरी जात  घमंडी हो,
जब तक ठेका लेकर लोकतंत्र का, पत्रकारिता पूर्ण पाखंडी हो,
जब तक केवल दामादों की, चिंता का ही, ठेका हो दरबारों का,
तब तक  भाग्य नहीं  बदलेगा, भारत का, भारत वालों का।
जब तक स्वप्न नहीं टूटेगा, इस घर का इसके घर वालों का,
तब तक  भाग्य नहीं  बदलेगा, भारत का  भारतवालों  का।

Tuesday, October 2, 2012

रात भर जलता रहा है चाँद Raat bhar jalta raha hai Chand

रात भर  जलता  रहा है  चाँद, फिर भी,
उधार की  रोशनी फीकी रही, फीकी रही।

चाहे उम्र भर बढती रही हो उम्र, फिर भी,
पल पल  जिंदगी  घटती रही, घटती रही।

पेट भर  खाता  रहा  इंसान,  फिर भी,
उसकी  नियत  भूखी  रही, भूखी  रही।

रात दिन  खटता रहा है बाप, फिर भी,
उसकी  भावना  अवहेलना  पाती  रही।

इस गाँव  मिटता रहा  इंसान, फिर भी,
उस शहर पब में  इंसानियत बढती रही।

चातकों ने जिसका  किया है  इन्तजार,
स्वाति सागरों को  दान में  बंटती रही।

लूट कर  भर लिए, घर सफ़ेदपोशों ने,
आम सपनों  की दुनिया  तडपती रही।

मेरी रगों में रक्त का होता रहा संचार,
पर धरा खून के  आंसू लिए रोती रही।

सब कुछ  दिया, जिस  धरती ने, उसे,
कुछ शब्द मिले, वही  गुनगुनाती रही।

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