Tuesday, December 17, 2013

कविता (मुक्तक) पाठ - दिल्ली में Reciting my poem in Delhi

नीरज द्विवेदी, गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के तत्वाधान में आयोजित सन्निधि संगोष्ठी में दोहा सम्राट नरेश शांडिल्य जी और वरिष्ठ साहित्यकार हरेन्द्र प्रताप जी की उपस्थिति में कविता पाठ करते हुए. — at गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, राजघाट, नयी दिल्ली. सन्निधि संगोष्ठी (दोहा,मुक्तक).


Thursday, December 12, 2013

जग रही है या सो रही है जिंदगी Jag rahi hai ya So rahi hai Jindagi

शब्द का विन्यास धरती का रुदन इतिहास,
केवल चल रही है या लड रही है जिन्दगी?

स्नेह आंचल का आंख काजल का परिहास,
केवल हंस रही है या रो रही है जिन्दगी?

शक्ति शान्ति सत्य का आधार विश्वास,
कुछ पा रही है या सब खो रही है जिन्दगी?

मनुष्य का जन्म कर्म और फिर सन्यास,
बीज बो रही है या दाग धो रही है जिंदगी?

मात्र लक्ष्य का है ध्यान और राह का उपहास,
आजकल जग रही है या सो रही है जिंदगी?

-- नीरज द्विवेदी

-- Neeraj Dwivedi

Tuesday, December 10, 2013

कुछ तेरे हत्यारे हैं Kuch tere hatyarein hain

संसद चौपाटी में बैठे जुगनू बन कर तारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं।

जंगल से निकल कर चोर उचक्के दरबारों में जा बैठे,
पैदा हुए शिकारी व्यभिचारी खद्दर की ओट लगा बैठे,
चरण चापते अमेरिका के भाग्य विधाता भारत के,
कुछ धर्म कर्म के मारे हैं कुछ भूख प्यास के मारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं।

धरती माँ पर बोझ बने हैं सर पर जिनके ताज सजे हैं,
देश धर्म का ठेका लेकर क्षद्म सेकुलर बाज बने हैं
जेब में रखकर संविधान और न्याय व्यवस्था भारत की,
कुछ देशद्रोह के धारे हैं कुछ आतंकी मंझधारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं।

चारा खाकर चहक रहे कोई कोयला खाकर जिन्दा है,
वो लालकिले पर जमे रहे भारत उन पर शर्मिंदा है,
लूट पाट कर भरी तिजोरी खून चूस कर धरती का,
सब नैतिकता तो भूल गए हैं दायित्वों से हारे हैं
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं।

संसद चौपाटी में बैठे जुगनू बन कर तारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं।

-- नीरज द्विवेदी

-- Neeraj Dwivedi

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