![]() |
Kedarnath Tragedy, India, 2013: Image from Jagran.com |
बारिश की
बूँदों यहाँ बरस लो, बेशर्मी से बार बार,
खाली हो जाना
अबकी, हो चुकी अगर हो शर्मसार…
पत्थर रोये धरती रोई, बर्फ शर्म से ऐसी पिघली,
जल जीवन कहने वालों को,
मौत दिखाई इतनी उजली…
मानवता के
दिखे चीथड़े, अबकी रूठ गया भगवान,
रोया बचपन
रोई जवानी, अबकी रोया सकल जहान…
इस बार बहाया भारत की, आँखों
ने है जी भर पानी,
जीवन में पहली बार दिखी,
पानी की ऐसी मनमानी…
चाहें जितना
गरियाऊँ मैं, पानी को आग लगाऊँ मैं,
कैसे कैसे
व्यंग्य गढ़ूं, मानव तुझको समझाऊँ मैं…
ये अंधी दौड़ भयानक है, हर
बार मनुज ही रोते हैं,
इंटों के जंगल से बेहतर,
लकड़ी के जंगल होते हैं।
-- Neeraj Dwivedi