गणतंत्र दिवस पर बेशर्मी से नाच रहे हैं
मोर,
ये देश वही है जिसके मंत्री होते बैशाखी चोर।
सजे धजे भूत की झांकी ढोल मृदंगों के नीचे,
दबा है वर्तमान की लुटी हुयी इज्जत का शोर।
ये शक्ति प्रदर्शन ला पायेगा उस शहीद का
सर,
जिसकी माँ के आँसू संग रोया भारत हरओर।
कब तक कायर खद्दर को ही वीर सलामी देंगे,
दरबारों की इच्छाशक्ति में जंग लगी है जोर।
सेना के शेरों ने करतब जरुर दिखलायें हैं
पर,
उनकी आँखों में पाओगे टूटती श्रृद्धा की डोर।
बह गया शहीद का खून भूख ले उडी सुकून,
लाचारी असुरक्षा से डरी है मातृशक्ति हरओर।
इसी देश के कैसे ये हालात, है कैसी ये सौगात,
नपुंसक सत्ता के करतब ले आई ये कैसी भोर।