फ़ोन में एक नंबर है ...
जिसे रोज देखता हूँ ...
उँगलियाँ उचकती हैं ...
पता नहीं क्या करने को ... फ़ोन में ही
...
फिर ...
न जाने क्या सोच कर ...
अटक जाती हैं ...
तभी कुछ बूँदें ...
कहीं से टपक जातीं हैं ...
तुम्हे तो पता ही होगा ...
बताओ न ...
क्या सोचती होंगीं ...
उगलियाँ और वो बूँदें ...
मुझे डर है ...
मेरे कमजोर होने की ...
नुमाइश तो नहीं ...
मेरे दिल की ...
ये साजिश तो नहीं ...
बताओ न ...