नीरज द्विवेदी, गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के तत्वाधान
में आयोजित सन्निधि संगोष्ठी में दोहा सम्राट नरेश शांडिल्य जी और वरिष्ठ साहित्यकार
हरेन्द्र प्रताप जी की उपस्थिति में कविता पाठ करते हुए. — at गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य
सभा, राजघाट, नयी दिल्ली. सन्निधि संगोष्ठी (दोहा,मुक्तक).
ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
Tuesday, December 17, 2013
Thursday, December 12, 2013
जग रही है या सो रही है जिंदगी Jag rahi hai ya So rahi hai Jindagi
शब्द का विन्यास धरती का
रुदन इतिहास,
केवल चल रही है या लड रही
है जिन्दगी?
स्नेह आंचल
का आंख काजल का परिहास,
केवल हंस
रही है या रो रही है जिन्दगी?
शक्ति शान्ति सत्य का आधार
विश्वास,
कुछ पा रही है या सब खो
रही है जिन्दगी?
मनुष्य का
जन्म कर्म और फिर सन्यास,
बीज बो रही
है या दाग धो रही है जिंदगी?
मात्र लक्ष्य का है ध्यान
और राह का उपहास,
आजकल जग रही है या सो रही
है जिंदगी?
-- नीरज द्विवेदी
-- Neeraj Dwivedi
Tuesday, December 10, 2013
कुछ तेरे हत्यारे हैं Kuch tere hatyarein hain
संसद चौपाटी में बैठे जुगनू
बन कर तारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ
मेरे हत्यारे हैं।
जंगल से निकल
कर चोर उचक्के दरबारों में जा बैठे,
पैदा हुए
शिकारी व्यभिचारी खद्दर की ओट लगा बैठे,
चरण चापते
अमेरिका के भाग्य विधाता भारत के,
कुछ धर्म
कर्म के मारे हैं कुछ भूख प्यास के मारे हैं,
कुछ तेरे
हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं।
धरती माँ पर बोझ बने हैं
सर पर जिनके ताज सजे हैं,
देश धर्म का ठेका लेकर क्षद्म
सेकुलर बाज बने हैं
जेब में रखकर संविधान और
न्याय व्यवस्था भारत की,
कुछ देशद्रोह के धारे हैं
कुछ आतंकी मंझधारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ
मेरे हत्यारे हैं।
चारा खाकर
चहक रहे कोई कोयला खाकर जिन्दा है,
वो लालकिले
पर जमे रहे भारत उन पर शर्मिंदा है,
लूट पाट कर
भरी तिजोरी खून चूस कर धरती का,
सब नैतिकता
तो भूल गए हैं दायित्वों से हारे हैं
कुछ तेरे
हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं।
संसद चौपाटी में बैठे जुगनू
बन कर तारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ
मेरे हत्यारे हैं।
-- नीरज द्विवेदी
-- Neeraj Dwivedi
Tuesday, November 19, 2013
ऐ भारत मेरे, खोजते हम तुम्हें हैं Ye Bharat Mere, Khojte hum tumhe hain
ढूंढते हम तुम्हें सोचते
हम तुम्हें हैं,
ऐ भारत मेरे खोजते हम
तुम्हें हैं,
गंगा के जल से कहां गुम
हुये हो,
घायल हिमालय से गुमसुम हुये
हो,
वो वादी दहशतजदा हो गयी
है,
रक्तिम चमन की फ़िजा हो गयी
है,
मैं भूला नहीं हूं वो
चोटें तुम्हारी,
ये टुकडे तुम्हारे कराहें
तुम्हारी,
टूटना ये तुम्हारा मेरे
नयन से,
ओस सा छूट जाना चुपके
पवन से,
गिरना बहना छिप छिप पिघलना,
तम में किरण कोई पाकर संभलना,
आस के बादलों पर टिका सर्द
नजरें,
घटाओं के संग अपने चेहरे
बदलना,
माटी के टुकड़ों में दिखते
नहीं हो,
बादल में बन बन कर छिपते
नहीं हो
कहाँ खो गए हो कहाँ सो
गए हो,
इंद्रधनुषी नजारों में
दिखते नहीं हो,
हमें है पता तुम हो गमगीन
बेहद,
हरकतें कुछ हमारी है संगीन
बेहद,
ठीक गुस्सा तुम्हारा मगर
रूठ जाना,
गलत है मात का पुत्र से
दूर जाना,
कान पकड़ो हमारे मगर पास
आओ,
प्रेरणा दो साथ में एक
दो लगाओ,
जानने को तुझे बस तुझे
जानता हूँ,
हे भारत तुझे बस तुझे
चाहता हूँ,
ढूंढते हम तुम्हें सोचते
हम तुम्हें हैं,
ऐ भारत मेरे खोजते हम
तुम्हें हैं।
Thursday, November 14, 2013
सियासत Siyasat
वो हैं कि देशभक्ति का अजीब शौक रखते हैं
ये हैं सियासी भेड़िए, कुत्तों की फौज रखते हैं...
दहशतजदा हिमालय कोई कर नहीं पाया,
दिल्ली के गलियारों में, अपना खौफ रखते हैं ...
खरीद कर इंसान फिर बेच कर इंसानियत,
छोड़ कर ईमान फिर पार कर हैवानियत,
५ रुपये का थप्पड़ भारत के मुंह पर मार,
भूखों का पेट लतियाने का ख्वाब रखते हैं....
कलम की सियासत से साँठ गाँठ ऐसी है,
खद्दर के पुतले में खाकी रीढ़ जैसी है,
ख़बरों के ठेकेदारों, तुम तोड़ लो, मरोड़ लो,
अखबार नहीं हैं हवाओं तक जोर रखते हैं ...
पैसें पेड़ पर लगाते हैं कारखानों में बनाते हैं,
पसीने से सींच सींच हम जमीन से उगाते हैं,
हाँ स्वप्न देखते हैं, और स्वप्न दिखाते हैं,
सपनों की छाती में मिट्टी की सौंध रखते हैं ...
रिक्त है जेब, निर्मोही, कर में कफ़न वाले,
चरैवैती चरैवैती की मन में लगन वाले,
व्रत लेकर निकलते हैं मानव की सेवा में,
गंगा के तीर से सरयू तक मौज रखते हैं ...
सुनो इटालियन नस्ल के, दिग्गज गुलामों,
मेरे भारत को बपौती मान बैठे दलालों,
इसी धरा की सौगंध जान लो पहचान लो,
जब सपूत निकलते हैं, जेबों में मौत रखते हैं ...
जन जन से कहना आजादी ज्यादा दूर नहीं है,
जाग रहें हैं पूत ये धरती अब मजबूर नहीं है,
इस देश की हर माँ से कहना पोंछ ले आँसूं,
अभी जिन्दा हैं पूत, मरने का शौक रखते हैं ...
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नीरज द्विवेदी
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Neeraj Dwivedi
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मैं खता हूँ Main Khata Hun
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...