Tuesday, August 21, 2012

अश्रु रीते Asru Reete


कब तक तुम्हारी याद के, मोती बनाऊँ अश्रु रीते?
तुम  इंद्रधनुषी रेख हो या,
आँख का  काजल सुहाना?
तुम गीत का सृंगार हो या,
कोई रंग भावों का पुराना?
रागिनी अपने हृदय की, किसको सुनाऊँ राग बीते?
कब तक तुम्हारी याद के, मोती  बनाऊँ अश्रु रीते?
कब तक भावना का बोझ,
आँखों में लिए फिरता रहूँगा?
कब तक निर्मोह का उपदेश,
पन्नों में दिये चलता रहूँगा?
कब तक रहूँ मैं चुप, कैसे दफनाऊँ स्वप्न बीते?
कब तक तुम्हारी याद के, मोती बनाऊँ अश्रु रीते?
अब मैं तेरी हर याद में,
जलकर पिघलना चाहता हूँ,
मैं तेरे आगोश में ही,
पल पल बिखरना चाहता हूँ,
कब तक लगाऊँ आस, जो सच्चे हृदय की टेक जीते?
कब तक तुम्हारी याद के, मोती बनाऊँ अश्रु रीते?
n  Neeraj Dwivedi

Monday, August 13, 2012

तरस रहीं दो आँखें Tarash Rahin Do Ankhein Apnon ko


कब से तरस रहीं दो आँखें, अपनों को।
जीवन का मोह न छूटा,
छूट गए सब दर्द पराए,
सुख दुख की राहगुजर में,
अपनों ने सारे स्वप्न जलाए,
अब तो बस कुछ नाम संग हैं, जपने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपनों को।

जी कर जर्जरता मनुज देह की,
माटी से हिया न रूठा,
सपने टूट गए अपने छूट गए,
खून पसीने सने गेह से नेह न छूटा,
जीती है मर मर कर करुण कथाएँ, बकने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपनों को।

खोटा सूनापन अंधियारापन,
समय का अनचाहा आवारापन,
सब कुछ ही सौंप चली जिनको,
उसने उनसे ही पाया बंजारापन,
चिंतित फिर कुछ रह गए काम, करने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपनों को।

उस दिन उड़ गया पखेरू,
माटी का गागर था, फूटा,
छोड़ छाड़ सब देह धरम,
उन माँ ने क्या पाया क्या छूटा,
फिर भी रह गया मोह बस लावारिस, जलने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपनों को।
-- Neeraj Dwivedi

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