Wednesday, December 14, 2011

शब्दों की पदोन्नति


अब मुझको अपने शब्द बड़े करने हैं,
अपने अंतर में उगते बढ़ते,
हँसते गाते, रहते कहते, भाव बड़े करने हैं
अब मुझको अपने शब्दों में
विस्तृत सन्दर्भ जरा भरने हैं... 

मैं नहीं चाहता रुक जाऊँ,
मैं नहीं चाहता थक जाऊँ
कहते कहते कोई बात
अब मुझको इन शब्दों के
अर्थों के व्याख्यान बड़े करने हैं...

कहनी है सीधी साधी बात,
पर उससे घाव गहन करने हैं,
गिन चुन थोड़े शब्दों में
कुछ सत्य बड़े कहने हैं
पहुँचानी है जन जन तक आवाज,
उनमें क्रांति भाव भरने है...

अब मुझको घाव गहन करने हैं

3 comments:

  1. excellent....
    i really admire ur style..
    good neeraj.

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  2. Beautiful take on words Neeraj. Even my recent poem is on words. Please spare some time to read it:)

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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