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Kedarnath Tragedy, India, 2013: Image from Jagran.com |
बारिश की
बूँदों यहाँ बरस लो, बेशर्मी से बार बार,
खाली हो जाना
अबकी, हो चुकी अगर हो शर्मसार…
पत्थर रोये धरती रोई, बर्फ शर्म से ऐसी पिघली,
जल जीवन कहने वालों को,
मौत दिखाई इतनी उजली…
मानवता के
दिखे चीथड़े, अबकी रूठ गया भगवान,
रोया बचपन
रोई जवानी, अबकी रोया सकल जहान…
इस बार बहाया भारत की, आँखों
ने है जी भर पानी,
जीवन में पहली बार दिखी,
पानी की ऐसी मनमानी…
चाहें जितना
गरियाऊँ मैं, पानी को आग लगाऊँ मैं,
कैसे कैसे
व्यंग्य गढ़ूं, मानव तुझको समझाऊँ मैं…
ये अंधी दौड़ भयानक है, हर
बार मनुज ही रोते हैं,
इंटों के जंगल से बेहतर,
लकड़ी के जंगल होते हैं।
-- Neeraj Dwivedi
ReplyDeleteये अंधी दौड़ भयानक है, हर बार मनुज ही रोते हैं,
इंटों के जंगल से बेहतर, लकड़ी के जंगल होते हैं।
--बिलकुल सही कहा आपने .-बहुत सुन्दर
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Thank you Sir.
DeleteYou have sorrow of current situation... Yahi ak kavi mai hona chahiye.. Keep It Up..
ReplyDeleteBahut ABhar Sir ..
DeleteBahut ABhar Yashoda Ji .. Jarur pahunchunga apke link par.
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत भावो की अभिवय्क्ति…।
ReplyDeletehmmmmmmm Trasdi pr aapne apni hi nahi hum jaise Lakho ki Bhavnao ko svdo mein vykat kiya hai Neeraj ji.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमानवता के दिखे चीथड़े, अबकी रूठ गया भगवान,
ReplyDeleteरोया बचपन रोई जवानी, अबकी रोया सकल जहान
शायद यही तूफ़ान की शान ,भक्त हुए परेशान