मेरी तन्हाईयाँ
आज पूछती
है मुझसे
कि वो भूले
बिसरे हुए गमजदा आँसू
जो निकले
तो थे
तुम्हारी
आँखों की पोरों से
पर जिन्हें
कब्र तक नसीब नहीं हुयी
जमीं तक नसीब
नहीं हुयी
जो सूख गए
अधर में ही
तुम्हारे
गालों से लिपट कर
तुम्हारे विषाद के ताप से
तुम्हारे विषाद के ताप से
वही आसूँ
जिन्होंने जिहाद किया था
अपने घरौंदों
से निकल कर
स्वयम को
बलिदान किया था
तुम्हारे
अंतस को, तुम्हारे जेहन को
इत्ता सा
ही सही, सुकूँ देने के लिए,
याद है न
गर याद है
तो बताओ
तुम्हे सुकून
ही चाहिए था न ?
……………………
मिला क्या ??
- नीरज द्विवेदी
- Neeraj
Dwivedi
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत आभार आदरणीय कैलाश जी, उत्साहवर्धन और आशीर्वाद देने के लिए.
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 31/08/2014 को "कौवे की मौत पर"चर्चा मंच:1722 पर.
Bahut Abhar Rajeev Ji ...
Deleteउम्दा भाव .. हार्दिक बधाई
ReplyDeleteThank you Mahima Ji for appreciation.
Deleteनीरज भाई गजब लिखते हो आप :)
ReplyDeleteAap sabke asheervad aur sath se hi jo thoda bahut seekha hai wahi likh pata hun ... Abhari hun.
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