Thursday, August 28, 2014

तन्हाईयाँ Tanhayiyan

मेरी तन्हाईयाँ
आज पूछती है मुझसे

कि वो भूले बिसरे हुए गमजदा आँसू
जो निकले तो थे
तुम्हारी आँखों की पोरों से
पर जिन्हें कब्र तक नसीब नहीं हुयी
जमीं तक नसीब नहीं हुयी

जो सूख गए अधर में ही
तुम्हारे गालों से लिपट कर
तुम्हारे विषाद के ताप से

वही आसूँ जिन्होंने जिहाद किया था
अपने घरौंदों से निकल कर
स्वयम को बलिदान किया था
तुम्हारे अंतस को, तुम्हारे जेहन को
इत्ता सा ही सही, सुकूँ देने के लिए,

याद है न
गर याद है तो बताओ
तुम्हे सुकून ही चाहिए था न ?
…………………… मिला क्या ??

-    नीरज द्विवेदी

-    Neeraj Dwivedi

8 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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    1. बहुत आभार आदरणीय कैलाश जी, उत्साहवर्धन और आशीर्वाद देने के लिए.

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  2. उम्दा भाव .. हार्दिक बधाई

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  3. नीरज भाई गजब लिखते हो आप :)

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    1. Aap sabke asheervad aur sath se hi jo thoda bahut seekha hai wahi likh pata hun ... Abhari hun.

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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