बहुत कुछ लिखा है तुमने
मेरी हथेली पर
रंगीन कूचियों से
छितराए हैं रंग
मुस्कुराते हुए
खिलखिलाते हुए
गुनगुनाते हुए
चढ़ रही है मेहँदी भी
बाखबर
अपने एहसास लिया
शर्माते हुए
छटपटाते हुए
झिलमिलाते हुए
जानती हो
कहीं कहीं
चुभन भी अगर हुयी होगी
तो पता नहीं चला मुझे
मैं तुम्हारी
खिलखिलाहट ही देखता रह गया। -- नीरज द्विवेदी (Neeraj Dwivedi)
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteअति सुन्दर भाव !!
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