आज एक कविता लिख रहा हूँ तुम पर,
बाद में कभी
पढना इसे
और मुझे भी …
n नीरज द्विवेदी
n Neeraj
Dwivedi
ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...
बढ़िया :)
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना बुधवार 28 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
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