आज बहुत अकेला पड़ गया हूँ माँ,
या तो आज मेरे पास
सबके लिए समय नहीं है,
या फिर उन सबके पास
मेरे लिए समय नहीं है माँ,
याद नहीं शायद मैंने ही कभी
ऐसी चाहत की होगी,
या फिर ऊपर वाले ने मेरे किसी
गुनाह की सजा दी होगी माँ,
मुझे याद नहीं कि मैंने कभी
तेरा अपमान किया है,
फिर ऊपर वाले ने क्यूँ मुझे,
तुझसे दूर किया है माँ?
मैंने कभी नहीं चाहा था
इतना ऊँचा उड़ना,
कि तुझसे ही दूरी हो जाये
हजारों मीलों की, माँ,
न ही कभी चाहा था तेरी
नज़रों से ओझल होना माँ,
फिर क्यूँ इस खुले आसमान में
घने बादलों के नीचे बैठ,
इस सुनसान में किसी की
राह देख रहा हूँ माँ?
मुझे अच्छी तरह पता है
कि कोई नहीं आयेगा यहाँ
फिर क्यों हवा की आहटों के संग
मुड़ मुड़ कर पीछे देख रहा हूँ माँ?
विडम्बना तो ये है, कि तुझे
बता भी कुछ नहीं सकता हूँ माँ,
क्योंकि मेरी ये हरकत,
तेरे लिए ख़ुशी तो नहीं
बस आंसू ही ला सकती है माँ,
यही सब सोच सोच,
तेरे हिस्से का भी
खुद ही रो लेता हूँ माँ
बस यूँ ही जी लेता हूँ माँ
खुद ही रो लेता हूँ माँ
मार्मिक रचना....
ReplyDeletebehad khbsurat bhaav....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....और भावुक रचना नीरज जी..
ReplyDeleteDon't worry man
ReplyDeleteHappyness is nothing just a state of mind.....
bahut marmik rachna.bhaavuk kar diya.
ReplyDeleteऐसा भी क्या हो गया जो माँ को भी नहीं बता सकते... इतना भी जज्बाती क्या होना...
ReplyDeleteअनीता जी ऐसा कुछ नहीं हुआ जो माँ को ही न बता सकूँ, और ऐसा कुछ कभी मुझसे होगा भी नहीं.
ReplyDeleteहुआ सिर्फ इतना है की बहुत दूर हूँ माँ से, और बहुत याद आ रही है उसकी. ये उसे बता इसलिए नहीं सकता कि वो वैसे भी अक्सर रोती होगी, और बताने से उसकी आखों में फिर से आंसू आ जायेगे. और अपनी माँ की आँखों में आंसू कौन लाना चाहेगा?
well said... nice wording...
ReplyDeleteबहुत मार्मिक भाव...सुन्दर...
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