मुक्तक -
तेरे बिन
तुझको जीतूँ
लक्ष्य है मेरा, तुझसे जीत नहीं चहिए,
तेरी जीत
में जीत हमारी, तेरी हार नहीं चहिए,
तू मेरा प्रतिमान
किरन है, जो मैं सूरज हो जाऊँ,
तू मेरा सम्मान
किरन है, जो मैं सूरज हो जाऊँ,
तेरे बिन
उगने ढलने का भी, अधिकार नहीं चहिए,
तेरे बिन
जीने मरने का भी, अधिकार नहीं चहिए।
- नीरज द्विवेदी
- Neeraj Dwivedi
चाहिये होना चाहिये ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
चहिए भी सही है :)
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (25.04.2014) को "चल रास्ते बदल लें " (चर्चा अंक-1593)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
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