क्षणिका
– एहसास
बापस कर दो
मुझे
मेरे एहसास
मेरी स्वांस
थक चुका हूँ
मैं
नाचते नाचते
शब्दों के इशारों पर
पन्नों के
सहारों पर
कठपुतली की
तरह …
n नीरज द्विवेदी
Neeraj Dwivedi
n https://www.facebook.com/LifeIsJustALife
ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबहुत आभार आदरणीय सुशील जी
Deleteअति सुंदर
ReplyDeleteबहुत आभार श्री संतोष जी
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