कब गुजरेगा
ये कुहासा
दिल्ली से
भारत के दिल से?
नेतृत्व की एतिहासिक चुप्पी,
राजनैतिक नपुंसकता,
दरबारी षणयंत्र,
अनैतिक नैतिकता,
आखिर कब गुजरेगा ये कुहासा?
कब बंद होंगे
असमय ओले पड़ना
दिल्ली में
भारत के दिल पर?
मंहगाई के,
भ्रष्टाचार के,
असुरक्षा के,
तुष्टीकरण के,
आखिर कब बंद होंगे असमय ओले पड़ना?
इस बार ये सर्दी,
ज्यादा लम्बी लगने लगी है,
ज्यादा बुरी लगने लगी है,
ज्यादा दर्द देने लगी है,
इस बार इस सर्दी को,
हमेशा के लिए ख़त्म करना होगा।
लग रहा है
पक चुका है नासूर
इस बार इसे
हमेशा के लिए अलग करना होगा।
भारत वालों हमेशा के लिए।
हमेशा के लिए।
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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --