जब तक भारत का आँसू, बस केवल आँसू
बना रहेगा,
जब तक आर्द भाव का झोंका, केवल झोंका बना रहेगा,
जब तक भारत का टुकड़ा, केवल टुकड़ा है भूखंडों का,
जब तक भारत को याद नहीं, जौहर अपने भुजदंडों का,
जब तक स्वप्न नहीं टूटेगा, इस घर का इसके घर वालों
का,
तब तक भाग्य नहीं बदलेगा, भारत का भारतवालों का।
जब तक धरती पर गिरे स्वेद का, वर्ण नहीं रक्तिम होगा,
जब तक छाती पर लगे घाव का, दर्द नहीं दिल पर होगा,
जब तक भारत पर इटली के, शागिर्द चलाएंगे शासन,
जब तक भारत पर थुपा रहेगा, चोरों का ये अनुशासन,
जब तक अर्थ नहीं समझेगा, मिट्टी के सरल सवालों का,
तब तक भाग्य नहीं बदलेगा, भारत का भारतवालों का।
जब तक भारत का अशोक, बस एक निहत्था
बना रहेगा,
जब तक युग ऋषियों का दल, वेतनभोगी जत्था बना रहेगा,
जब तक समर्थ गुरु रामदास, तलवार नहीं सिखलाएंगे,
जब तक भारत के नौनिहाल ही, शिवा नहीं बन जायेंगे,
जब तक चाणक्य नहीं जागेगा, इस धरती पर मतवालों का,
तब तक भाग्य नहीं बदलेगा, भारत का भारतवालों का।
जब तक भामा इस धरती के, बस अपना पेट
सजायेंगे,
जब तक चांदी के महल बना, सोने से भरते जायेंगे,
जब तक बन्दर होगा निर्मूल नहीं, खद्दर कायर पाखंडों का,
जब तक छाती में तेज नहीं, होगा परमाणु बिखंडों का,
जब तक विरोध केवल विरोध है, विचारहीन सवालों का,
तब तक भाग्य नहीं बदलेगा, भारत का भारतवालों का।
जब तक भारत की माओं को, केवल परिवार दिखाई देता हो,
जब तक नुक्कड़ चौराहों पर, मारो काटो का शोर सुनाई देता हो,
जब तक चुने हुए धन प्रतिनिधियों की, पूरी जात घमंडी हो,
जब तक ठेका लेकर लोकतंत्र का, पत्रकारिता पूर्ण पाखंडी हो,
जब तक केवल दामादों की, चिंता का ही, ठेका हो दरबारों का,
तब तक भाग्य नहीं बदलेगा, भारत का, भारत वालों का।
जब तक नुक्कड़ चौराहों पर, मारो काटो का शोर सुनाई देता हो,
जब तक चुने हुए धन प्रतिनिधियों की, पूरी जात घमंडी हो,
जब तक ठेका लेकर लोकतंत्र का, पत्रकारिता पूर्ण पाखंडी हो,
जब तक केवल दामादों की, चिंता का ही, ठेका हो दरबारों का,
तब तक भाग्य नहीं बदलेगा, भारत का, भारत वालों का।
जब तक स्वप्न नहीं टूटेगा, इस घर का इसके घर वालों
का,
तब तक भाग्य नहीं बदलेगा, भारत का भारतवालों का।
बढिया रचना
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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