Wednesday, October 10, 2012

मरते हुये दीप की आशा Marte Huye Deep Ki Asha


इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

निःशब्द हवाएँ व्याकुल अंकुर,
शब्दों के इस बहिर्जाल में,
भाव हुये सुने क्षणभंगुर,
एक आर्द आह की करुणिक भाषा
चल लेकर भाग चलें।
इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

वीर शिवा प्रताप से पोषित धरती,
अहिंसक प्रलाप से वीर्य हीन हो,
खद्दर की अंध गुलामी करती,
अब देशधर्म की सच्ची परिभाषा,
चल लेकर भाग चलें।
इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

ये कैसा जिहाद है कलमों का,
बिकने की जब होड़ लगी है,
तब अद्भुत प्रलाप है कलमों का ,
किंचित खुदरे पन्नों की अभिलाषा,
चल लेकर भाग चलें।
इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

शायद अंगड़ाई लेता है भारत,
अब जान रहा है धीरे धीरे,
क्या पाया क्या लुटा है अब तक,
उत्सुक भारत की अभिनव जिज्ञासा,
चल लेकर भाग चलें।
इस मरते हुये दीप की आशा,
चल लेकर भाग चलें।

1 comment:

  1. बहुत अच्छा लिखा है ...आज का कारुणिक सत्य

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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