Sunday, October 7, 2012

देश अपना मर रहा है Desh Apna Mar raha hai


चल रही शब्दों  की  कोशिश, अर्थ  देखो डर रहा है,
तुम मगर  समझे न समझे, देश अपना मर रहा है।

कुछ कार्टूनों की नजर में, संविधान सड़ता जा रहा है,
चल पड़े कुछ  कदम जब से, देश  बढ़ता जा रहा है।

अब तो खोलो  आँख, फिर देख लो शीशा चमन का,
मौन चिलचिलाती  धूप में, हाल ये अपने वतन का।

यदि रक्त सिंचित हैं शिराएं, तो उठो अब नौजवानों,
अन्न साहस  का उगाओ, न्याय से वंचित किसानों।

ये देश  देखो थक रहा है, सत्य का  मरघट रहा है,
अब अथक  उत्साह  लेकर, शब्द आगे  बढ़ रहा है।

साथ जीना  हो तो आओ, साथ मरना हो तो आओ,
या फिर रहो असहाय वंचित, कायरों के गीत गाओ।

1 comment:

  1. शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
    पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
    और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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