Thursday, August 28, 2014

तन्हाईयाँ Tanhayiyan

मेरी तन्हाईयाँ
आज पूछती है मुझसे

कि वो भूले बिसरे हुए गमजदा आँसू
जो निकले तो थे
तुम्हारी आँखों की पोरों से
पर जिन्हें कब्र तक नसीब नहीं हुयी
जमीं तक नसीब नहीं हुयी

जो सूख गए अधर में ही
तुम्हारे गालों से लिपट कर
तुम्हारे विषाद के ताप से

वही आसूँ जिन्होंने जिहाद किया था
अपने घरौंदों से निकल कर
स्वयम को बलिदान किया था
तुम्हारे अंतस को, तुम्हारे जेहन को
इत्ता सा ही सही, सुकूँ देने के लिए,

याद है न
गर याद है तो बताओ
तुम्हे सुकून ही चाहिए था न ?
…………………… मिला क्या ??

-    नीरज द्विवेदी

-    Neeraj Dwivedi

Saturday, August 23, 2014

गीत - तरस रहीं दो आँखें Taras Rahin Do Ankhein

तरस रहीं दो आँखें बस इक अपने को

मोह नहीं छूटा जीवन का,
छूट गए सब दर्द पराए,
सुख दुख की इस राहगुजर में,
स्वजनों ने ही स्वप्न जलाए,
अब तो बस कुछ नाम संग हैं, जपने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपने को।

जर्जरता जी मनुज देह की,
पर माटी से मोह न टूटा,
अपने छूटे सपने टूटे,
किन्तु गेह का नेह न छूटा,
फिर फिर जीतीं करुण कथाएँ, कहने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपने को।

खोटा सूना अंधियारापन,
कब चाहा था आवारापन,
सब कुछ सौपा जिन हाथों में,
उनसे पाया बंजारापन,
चिंतित हैं कुछ रह गए काम, करने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपने को

उड़ा एक दिन प्राण पखेरू,
फूट गयी माटी की गागर,
छोड़ छाड़ सब देह धरम,पर
उस माँ ने खोया क्या पाकर,
मोह रह गया बस लावारिस, जलने को।
कब से तरस रहीं दो आँखें, अपने को।

-    Neeraj Dwivedi

-    नीरज द्विवेदी

Tuesday, August 19, 2014

चलो मिलाकर हाथ चलें Chalo Milakar Hath Chalein

चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें,

आसमान में फर फर देखो,
फहर रहा भगवा ध्वज अपना,
कर्म रहा पाथेय हमारा,
रचा बसा है बस इक सपना,
एक हो हिन्दुस्तान हमारा, मात्र यही प्रण साध चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

अडिग हमारी निष्ठा मन में,
लक्ष्य प्राप्ति की कोशिश तन में,
तन मन धन सब कुछ अर्पण है,
संघ मार्ग के दुष्कर रण में,
केशव के पावन विचार को, ध्येय मान दिन रात चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

दुश्मन की कातर ध्वनियों में,
ओज विजय का श्वर साधें हम,
विघटित भारत के टुकडों कों,
सिलने के पक्के धागे हम,
भगवा ध्वज लेकर हाथों में, करें शत्रु संहार चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

जाति पंथ के भेद भाव को,
संघ नही स्वीकार करेगा,
राष्ट्र धर्म पर आंच न आए,
हर मन में विश्वास भरेगा,
धरती के निर्मल आन्चल पर, बन गंगा की धार चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

हिन्दु राष्ट्र के स्वप्न सजग में,
अपना गौरव मान न भूलें,
विश्वगुरू हो सबल राष्ट्र हो,
करना है बलिदान न भूलें,
देश धर्म के कठिन मार्ग पर, हो चाहें अंगार चलें,
चलो मिलाकर हाथ चलें, संघ मार्ग पर साथ चलें।

-    नीरज द्विवेदी
-    Neeraj Dwivedi


Tuesday, August 5, 2014

मुँहबंदी का रोजा Munhbandi Ka Roja


मेरठ पर न बोल सके तो जरा सहारनपुर पर बोलो,
जबरन धर्म बदलने की इस कोशिश पर ही मुँह खोलो,
क्या चुप ही रहोगे जब तक पीड़ित रिश्तेदार न होगा,
समय यही है अरे सेकुलर मुँहबंदी का रोजा खोलो।

-- नीरज

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