Wednesday, May 28, 2014

क्षणिका - गुलाबी रंग के रिश्ते Gulabi Rang ke Rishte


बहुत नाजुक से होते हैं
गुलाबी रंग के रिश्ते
मगर
भरोसे के सहारे की
जरूरत तो

यहाँ हर रंग को होती है।        -- नीरज द्विवेदी (Neeraj Dwivedi)

एक लत Ek Lat


मेट्रो भी अजीब है
जितनी ज्यादा
बेतरतीब आवाजें सुनाई देतीं हैं
ज्ञान गंगाएँ
उतना ही शांत हो जाता हूँ मैं,

जितनी ज्यादा भीड़ मिलती है
अनजान लोगों की
अनभिज्ञ चेहरों की
उतना ही अकेला हो जाता हूँ मैं,

जैसे ही अकेला होता हूँ
शांत होता हूँ
तुम आ जाते हो
ख्यालों में,

बहुत जिद्दी हो
कहीं कभी अकेला छोड़ते ही नहीं
एक लत बन गए हो तुम।

n  नीरज द्विवेदी
n  Neeraj Dwivedi

Tuesday, May 27, 2014

क्षणिका - एक कविता Ek Kavita


आज एक कविता लिख रहा हूँ तुम पर,
बाद में कभी
पढना इसे
और मुझे भी …

n  नीरज द्विवेदी
n  Neeraj Dwivedi

Sunday, May 25, 2014

खिलखिलाहट Khilkhilahat


बहुत कुछ लिखा है तुमने
मेरी हथेली पर
रंगीन कूचियों से

छितराए हैं रंग
मुस्कुराते हुए
खिलखिलाते हुए
गुनगुनाते हुए 

चढ़ रही है मेहँदी भी
बाखबर
अपने एहसास लिया
शर्माते हुए
छटपटाते हुए
झिलमिलाते हुए

जानती हो
कहीं कहीं
चुभन भी अगर हुयी होगी
तो पता नहीं चला मुझे
मैं तुम्हारी

खिलखिलाहट ही देखता रह गया।    -- नीरज द्विवेदी (Neeraj Dwivedi)

Friday, May 23, 2014

क्षणिका - इन्तजार

क्षणिका - इन्तजार

पाना
केवल पलभर का ...
और इन्तजार की हद क्या है ?
क्यों
एक पल से
काम चलाऊं ...
सदियों के
इन्तजार से

बेहतर क्या है?
-- नीरज द्विवेदी 
-- Neeraj Dwivedi

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