मेरठ पर न
बोल सके तो जरा सहारनपुर पर बोलो,
जबरन धर्म
बदलने की इस कोशिश पर ही मुँह खोलो,
क्या चुप
ही रहोगे जब तक पीड़ित रिश्तेदार न होगा,
समय यही है
अरे सेकुलर मुँहबंदी का रोजा खोलो।
-- नीरज
ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...
हर तरह से इसका विरोध होना ही चाहिए
ReplyDeleteज़बरदस्त विरोधी हुंकार .... काबिले तारीफ रचना
ReplyDelete