Sunday, May 25, 2014

खिलखिलाहट Khilkhilahat


बहुत कुछ लिखा है तुमने
मेरी हथेली पर
रंगीन कूचियों से

छितराए हैं रंग
मुस्कुराते हुए
खिलखिलाते हुए
गुनगुनाते हुए 

चढ़ रही है मेहँदी भी
बाखबर
अपने एहसास लिया
शर्माते हुए
छटपटाते हुए
झिलमिलाते हुए

जानती हो
कहीं कहीं
चुभन भी अगर हुयी होगी
तो पता नहीं चला मुझे
मैं तुम्हारी

खिलखिलाहट ही देखता रह गया।    -- नीरज द्विवेदी (Neeraj Dwivedi)

3 comments:

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

Featured Post

मैं खता हूँ Main Khata Hun

मैं खता हूँ रात भर होता रहा हूँ   इस क्षितिज पर इक सुहागन बन धरा उतरी जो आँगन तोड़कर तारों से इस पर मैं दुआ बोता रहा हूँ ...