मैं, तुम
और हम होने का एहसास
उस वक्त
जब हम, हम नहीं थे
मैं और तुम थे,
उस वक्त
जब आसमां
के टुकड़े टुकड़े हो चुके थे
और हर टुकड़ा
बस
नीर होने को
व्याकुल था
अश्रु होने
को उत्सुक था
उस वक्त
जब संशय की
कलुषित चादर
अरुणिमा की
नेह
आच्छादित किरणों को
मुझ तक पहुँचने
से रोक रहीं थीं,
जानती हो
उस वक्त तुम्हारा होने की
तड़प से
मुझे एहसास हुआ
कि मैं
अब मैं नहीं रहा …
और मुझे विश्वास था
कि तुम, तुम नहीं रही हो
…
n
नीरज द्विवेदी
n
Neeraj Dwivedi
बहुत सुंदर!
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