मेरे विश्वास
अब नहीं गिनना चाहता मैं
मात्राएँ
बनाने को छंद,
बुनने को अपने द्वंद,
क्यों सहारा
लूँ पन्नों का
क्यों बहा
दूँ अपनी भावनाएं स्याही के रंग में
शब्दों के
ढंग में
और क्यों बताऊँ दुनिया को
अपने एहसास
अपनी आत्मा के विश्वास,
मुझे डर है
मेरे अपनों
की यादें
मेरे सपनो
की बातें
मेरे बनने
की रातें,
मेरा अहम्, मेरा स्वयं,
मेरा अभिमान, मेरा सम्मान
सब कुछ
भुला दिया
जायेगा
जैसे उसने
भुला दिए
मेरे विश्वास
…
n नीरज द्विवेदी
( Neeraj Dwivedi )
वाह !
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