ये तो बस कुछ पल होते हैं, जब इतना वैचैन होते हैं,
और वो साथ नही ये जान, हम तो बस मौन होते हैं।
होंठ विवश समझ, चल पडती है लेखनी इन पन्नों पर,
कोशिश खुशी बाँटने की, पर पन्ने बस दर्द बयाँ करते हैं॥
Sunday, January 12, 2014
कविता पाठ - दिल्ली में Reciting my poem in Delhi
नीरज
द्विवेदी, नांगलोई में आयोजित सुरभि संगोष्ठी में बहुत से अन्य रचनाकारों की उपस्थिति
में कविता पाठ करते हुए. — at नांगलोई, दिल्ली. सुरभि संगोष्ठी
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