Sunday, January 26, 2014

क्षणिका – महँगी धरती

क्षणिका – महँगी धरती

कल
धरती पर
जो लुट जाती थी
वो जान
लूट ली जाती आज ...
कल भी धरती महँगी थी
आज भी धरती महँगी है ...

--    Neeraj Dwivedi 
-- नीरज द्विवेदी

4 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार श्री सुशील जी, उत्साहवर्धन करने के लिए

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  2. पर धरती की किस्मत में लुटना ही लिखा है ...

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    Replies
    1. हाँ श्री दिगम्बर जी, यही है हमारे समाज का सभ्यता का कटु सत्य।

      Delete

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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