Sunday, October 20, 2013

जैसे कोई शीशा टूट गया हो Jaise Koi Sheesha Tut Gaya ho

एक छन्न की आवाज
जैसे कोई शीशा टूट गया हो
बिखर गया हो
गिरकर आँखों की कोरों से
कोई सपना
कोई अपना
गूंजता रहा एक सत्य
कानों में
एक कड़वा नंगा सच
किशोर के गानों में ……

चलो इसे संगीत बनाते हैं
इन सांसो को
इन आहों को
इस कडवे नंगे सच को
हम भी
एक बार फिर
संवारकर गीत बनाते हैं
नज़्म बनाते हैं ……

वैसे नज़्म भी तो
बिखर सकती है
इक आह के साथ
रोज
एक छन्न की
आवाज के साथ
जैसे कोई शीशा टूट गया हो।

Monday, October 14, 2013

भारत में गौहत्या - एक दंश

कल फिर
अनगिन निरीह आहें निकलेंगी
इसी भूमि पर
फिर से धरती को सहना होगा
अथाह संताप
कातर चीत्कारें
अस्पष्ट मार्मिक पुकारें
बूचडखानों से निकलेंगी
कुछ जीवों की संतप्त ध्वनियाँ
जिन पर दिखाया गया होगा वीरत्व
कुछ शांतिप्रिय सज्जन लोगों द्वारा

आपको क्या लगता है
क्या ये धरती सह पाएगी
निरीह आर्त पुकारों को
अपने जेहन में शांत कर पाएगी
इन अपरिमित चीत्कारों को

महाकुम्भ की भगदड़ याद है
उत्तराँचल का विद्रूप रूप
कल का रतनगढ़ में
पुल टूटने की अफवाह
और उसके बाद बिछी लाशें तो नहीं भूले होगे

कुछ समझ आया

भले ही ये सब करते हैं वो लोग
जो शायद गलत हैं
पर मैं सहमत हूँ
कि दंड उन्हें ही मिलना चाहिए
जो चुप हैं,
कायर हैं, खामोश हैं।

चाहे बात गौहत्या की हो
या भारत में राजनीति की निरंकुशता की।

जय गौ माता, जय भारत

Monday, October 7, 2013

रेशे Reshe

रेशे

कल शाम
बिछुड़ गए मुझसे
मेरे कई अधूरे शब्द,
खो गए
कुछ अस्पष्ट भाव
बिखरे हुए
अजन्में विचार
और
दूर हो गयीं मुझसे
कुछ अधूरी पंक्तियाँ
अधपकी नज्में
और मेरे अंग …….

लगा जैसे
कुछ रेशे निकल गए हों
मेरे जेहन के
मेरी आत्मा के …….

-    Neeraj Dwivedi

-    नीरज द्विवेदी

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