मैं कैसे बदल जाऊं हर
बार कैसे जीत बनाऊं, हार,
लाशों के दम पर जीवित दिन कैसे बन जाते त्यौहार?
अगल बगल के ऐरे गैरे जब तब हम पर चढ़ आते हैं,
कैसे भारत सो जाता है
करवट लेकर ही दो चार?
काश्मीर वो रत्नजडित सा मुकुट हमारी धरती का,
सबसे उज्जवल अंग सुन्दर शीश हमारी धरती का,
उस पर जब भी लिखा गया तालिबान को
जिन्दावाद,
तब दरबारों की चुप्पी देख आंखें रक्तिम हो
जाती है?
राम कोठरी में रहकर जब
थक जाओ तो बतलाना,
जन्मभूमि में जगह नहीं है लंका जाने को कहलाना,
हाँ, एक काम हम कर सकते हैं तेरह वर्ष बचायेंगे,
किंगफिशर के एयरोप्लेन से कुछ घंटों में पहुंचाएंगे।
सीता को जन्म नहीं मिलता पैदा होते मर
जाती है,
अच्छा है वो दिल्ली का वहसीपन देख नहीं
पाती है,
दारू चरस के ठेके गलियों में मौन निमंत्रण
देते हैं,
सत्ता के गलियारों को इस पर शर्म नहीं आती
है?
कर्म धर्म हुआ करता
है धर्म कर्म कैसे बन जाता,
कैसे धरती गंगा गौ माताएँ करती रहतीं हाहाकार?
स्वप्न देखना निर्धन
का दुनिया को स्वीकार नहीं,
पानी की जंग में मरता बचपन अक्सर होता समाचार।
पत्रकारिता धर्म कहा जाता है कहीं कहीं
होता भी हो,
हमने चौराहों तक पर देखी न्यूज़ दुकानों की
भरमार
सत्ताधीशों की नामर्दी कब तक अपना भाग्य रहेगा,
मोदी लाओ देश बचाओ अब कर दो इसका उपसंहार।
कैसे भारत सो जाता है करवट लेकर ही दो चार?
-- Neeraj Dwivedi