संसद चौपाटी में बैठे जुगनू
बन कर तारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ
मेरे हत्यारे हैं।
जंगल से निकल
कर चोर उचक्के दरबारों में जा बैठे,
पैदा हुए
शिकारी व्यभिचारी खद्दर की ओट लगा बैठे,
चरण चापते
अमेरिका के भाग्य विधाता भारत के,
कुछ धर्म
कर्म के मारे हैं कुछ भूख प्यास के मारे हैं,
कुछ तेरे
हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं।
धरती माँ पर बोझ बने हैं
सर पर जिनके ताज सजे हैं,
देश धर्म का ठेका लेकर क्षद्म
सेकुलर बाज बने हैं
जेब में रखकर संविधान और
न्याय व्यवस्था भारत की,
कुछ देशद्रोह के धारे हैं
कुछ आतंकी मंझधारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ
मेरे हत्यारे हैं।
चारा खाकर
चहक रहे कोई कोयला खाकर जिन्दा है,
वो लालकिले
पर जमे रहे भारत उन पर शर्मिंदा है,
लूट पाट कर
भरी तिजोरी खून चूस कर धरती का,
सब नैतिकता
तो भूल गए हैं दायित्वों से हारे हैं
कुछ तेरे
हत्यारे हैं कुछ मेरे हत्यारे हैं।
संसद चौपाटी में बैठे जुगनू
बन कर तारे हैं,
कुछ तेरे हत्यारे हैं कुछ
मेरे हत्यारे हैं।
-- नीरज द्विवेदी
-- Neeraj Dwivedi
Bahut Abhar Susheel Ji .. Utsah vardhan karne ke liye ..
ReplyDeleteबिलकुल सही चित्र खिंचा है आपने
ReplyDeleteनई पोस्ट भाव -मछलियाँ
new post हाइगा -जानवर
Bahut Abhar Kalipad Ji ..
Deleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार
Very True
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