वो हैं कि देशभक्ति का अजीब शौक रखते हैं
ये हैं सियासी भेड़िए, कुत्तों की फौज रखते हैं...
दहशतजदा हिमालय कोई कर नहीं पाया,
दिल्ली के गलियारों में, अपना खौफ रखते हैं ...
खरीद कर इंसान फिर बेच कर इंसानियत,
छोड़ कर ईमान फिर पार कर हैवानियत,
५ रुपये का थप्पड़ भारत के मुंह पर मार,
भूखों का पेट लतियाने का ख्वाब रखते हैं....
कलम की सियासत से साँठ गाँठ ऐसी है,
खद्दर के पुतले में खाकी रीढ़ जैसी है,
ख़बरों के ठेकेदारों, तुम तोड़ लो, मरोड़ लो,
अखबार नहीं हैं हवाओं तक जोर रखते हैं ...
पैसें पेड़ पर लगाते हैं कारखानों में बनाते हैं,
पसीने से सींच सींच हम जमीन से उगाते हैं,
हाँ स्वप्न देखते हैं, और स्वप्न दिखाते हैं,
सपनों की छाती में मिट्टी की सौंध रखते हैं ...
रिक्त है जेब, निर्मोही, कर में कफ़न वाले,
चरैवैती चरैवैती की मन में लगन वाले,
व्रत लेकर निकलते हैं मानव की सेवा में,
गंगा के तीर से सरयू तक मौज रखते हैं ...
सुनो इटालियन नस्ल के, दिग्गज गुलामों,
मेरे भारत को बपौती मान बैठे दलालों,
इसी धरा की सौगंध जान लो पहचान लो,
जब सपूत निकलते हैं, जेबों में मौत रखते हैं ...
जन जन से कहना आजादी ज्यादा दूर नहीं है,
जाग रहें हैं पूत ये धरती अब मजबूर नहीं है,
इस देश की हर माँ से कहना पोंछ ले आँसूं,
अभी जिन्दा हैं पूत, मरने का शौक रखते हैं ...
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नीरज द्विवेदी
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Neeraj Dwivedi
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