Sunday, October 20, 2013

जैसे कोई शीशा टूट गया हो Jaise Koi Sheesha Tut Gaya ho

एक छन्न की आवाज
जैसे कोई शीशा टूट गया हो
बिखर गया हो
गिरकर आँखों की कोरों से
कोई सपना
कोई अपना
गूंजता रहा एक सत्य
कानों में
एक कड़वा नंगा सच
किशोर के गानों में ……

चलो इसे संगीत बनाते हैं
इन सांसो को
इन आहों को
इस कडवे नंगे सच को
हम भी
एक बार फिर
संवारकर गीत बनाते हैं
नज़्म बनाते हैं ……

वैसे नज़्म भी तो
बिखर सकती है
इक आह के साथ
रोज
एक छन्न की
आवाज के साथ
जैसे कोई शीशा टूट गया हो।

2 comments:

  1. गिर कर आँखों के कोनों से कोई सपना-अपना शीशा टूटने की आवाज की तरह ही ढुलक गया हो, जिसे शीशे की तरह ही फिर जोड़ा ना जा सके. सुन्दर भाव.

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  2. भावपूर्ण रचना |

    मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"

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