एक छन्न की आवाज
जैसे कोई शीशा टूट गया हो
बिखर गया हो
गिरकर आँखों की कोरों से
कोई सपना
कोई अपना
गूंजता रहा एक सत्य
कानों में
एक कड़वा नंगा सच
किशोर के गानों में ……
चलो इसे संगीत बनाते हैं
इन सांसो को
इन आहों को
इस कडवे नंगे सच को
हम भी
एक बार फिर
संवारकर गीत बनाते हैं
नज़्म बनाते हैं ……
वैसे नज़्म भी तो
बिखर सकती है
इक आह के साथ
रोज
एक छन्न की
आवाज के साथ
जैसे कोई शीशा टूट गया हो।
गिर कर आँखों के कोनों से कोई सपना-अपना शीशा टूटने की आवाज की तरह ही ढुलक गया हो, जिसे शीशे की तरह ही फिर जोड़ा ना जा सके. सुन्दर भाव.
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"