शोर सुना कल कल कलसा का,
श्वेत वर्ण का मल मल
पानी,
हरित धरा के अनगिन
दर्पण,
देख प्रकृति की चूनर
धानी …
एक श्रृंखला दमक रही
है,
रश्मिरथी की कृपापात्र बन,
दूजी ओढ़े एक चदरिया,
मटमैली सी रूठ सघन
…
दृश्य अनोखे अद्भुत अनुपम,
और चहकते मन का कलरव,
रोम रोम में भर
देता है,
सब खोकर पाने का अनुभव ...
भूल गया हूँ दौड़ भाग सब,
खोने पाने की
जद्दोहद,
कैसी ये चिरशांति
अपरिचित,
रंगों का कैसा है ये मद ...
जी करता है खो जाऊं मैं,
इसका हिस्सा हो जाऊं मैं,
ईंटों के जंगल से
बचकर,
सपनों का किस्सा हो जाऊं मैं ...
-- Neeraj Dwivedi
Best Poetry...friend but it is about Nainital or for life..please explain..thanks for sharing.
ReplyDelete