हे कृष्ण तुम्हारी लीलाएं
कुछ प्रेमपगी कुछ शोणितमय,
कुछ माखनचोरी गौपालन
कुछ त्यागमयी कुछ अन्त्योदय।
कुछ चोरी
सीनाजोरी कर
कुछ गोकुल
वाली होली पर,
गलियन गलियन
गूंज रही
जय राधे राधे
बोली पर।
मटकी माखन फोड तोड
कहीं गोवर्धन को धारण कर,
सुन्दर झांकी है दृश्यमान
कहीं गीतामृत उच्चारण कर।
कहीं रास
राधिका दमक रही,
कहीं तनी
बांसुरी अधरों पर,
कहीं बाल
कृष्ण शोभा निहार,
हर्षित मन
हैं पुलकित तरुवर।
हे कृष्ण तुम्हारी प्रेम
रागिनी
से गुञ्जित यमुना का तट,
याद मेरे भारत को अब तक,
श्रृँगारमयी लीला पनघट।
पर यमुना
के जल प्रवाह का,
याद नहीं
वो नृत्य नाग पर,
कौरवराज की
भरी सभा का,
दुर्योधन
संवाद न्याय पर।
भारत के घर घर को अब,
गीता की भाषा याद मगर,
पर भूला हर व्यक्ति यहाँ
का,
वीरोचित प्रत्येक डगर।
धर्म कर्म
की परिभाषा तो,
करते हैं
इस बार बहुत,
कहाँ गयी
दिनकर की भाषा,
रसिया फिर
बन गये बहुत।
इस बार सिखाओ कान्हा फिर,
भारत को एक और समर,
भूखों को अब भीख नहीं,
हक़ चहिये इस बार मगर।
-- Neeraj Dwivedi
हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा...
:-)
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-08-2013 को चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
Bahut Abhar Dilbag Ji
Deleteकृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः8
अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
ReplyDeleteआपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 30-08-2013 के .....राज कोई खुला या खुली बात की : चर्चा मंच 1353 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!
सादर...!
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteAwesome lines bro.. :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
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