Thursday, June 6, 2013

ये क्या बेहूदगी है? Ye kya behudagi hai?

ये क्या बेहूदगी है?

तेज हवाएं
धूल भरी आंधी
टूटे फूटे अरमान चीथड़ों से
पता नहीं किसके
जाने कहाँ से लेकर आना
जहाँ मन चाहे फेंक जाना
गडगडाना चिल्लाना
और बरस जाना ...

आज ही तो सूखने को डाले थे
अपने अरमानों के टुकडे
अजन्मी नज्मों के मुखड़े
कुछ टूटे फूटे एहसास
हाँ कुछ जख्म भी
और तुम
आकर फिर नम कर गए ...


ये क्या बेहूदगी है?

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