तेरा इन खामोश
पलकों,
संग गुप चुप
मुस्कुराना,
आँख से कुछ कर इशारे,
तेरा मुड कर रूठ जाना।
शबनम सा चुपके
से बरसना,
और फूलों
की पनाहें,
तेरा ये पलकें झुकाना,
और तिरछी सी निगाहें।
ऐ ख़ुशी तू
रोक ले अब
और ये कातिल
इशारे,
छोड़ कर जाती कहाँ
मदहोश कर किसके सहारे?
ऐ ख़ुशी तू
रोक ले अब,
और ये कातिल
इशारे।
-- Neeraj Dwivedi
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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --