Monday, May 13, 2013

संवेदन Samvedan


मैं प्यार मोहब्बत तब  लिखता हूँ जब जीना मुश्किल हो जाता है,
बोझ हक़ीकत का सपनों की छाती पर  ढोना मुश्किल हो जाता है।

कुछ मर जाते हैं कुछ बह जाते हैं परन्तु कुछ भीतर ही रह जाते हैं,
भाव अनाथों से जिनका इस दुनिया में पलना मुश्किल हो जाता है।

मैं दुखी नहीं हूँ जीवित हूँ रोग दिखाई देते हैं एहसास सुनाई देते हैं,
सड़कों पर मरते भारत की  चीखों को सहना  मुश्किल हो जाता है।

कलम उठाकर  भरकर भारत का दर्द  गिराता हूँ पन्नों पर अक्सर,
इस तरह बहाकर भी धरती का दर्द कम होना मुश्किल हो जाता है।

भूखे नंगे छोटे छोटे कंकालों को देखो एक बार निकल कर कारों से,
देखोगे हर दिन कैसे  उनके सूरज का ढलना  मुश्किल हो जाता है।

जब जब  मेरे भारत की सडको पर  कोई बच्चा भूखा सो जाता है,
दिल्ली की सौगंध भले अमृत होंठो पर हो पीना मुश्किल हो जाता है।


 -- Neeraj Dwivedi

4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर सटीक भावपूर्ण रचना.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए आभार!

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  3. bhot khub
    भूखे नंगे छोटे छोटे कंकालों को देखो एक बार निकल कर कारों से,
    देखोगे हर दिन कैसे उनके सूरज का ढलना मुश्किल हो जाता है।

    जब जब मेरे भारत की सडको पर कोई बच्चा भूखा सो जाता है,
    दिल्ली की सौगंध भले अमृत होंठो पर हो पीना मुश्किल हो जाता है।
    yha pr to aapne kmal kr diya waaaah

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  4. वा भाई क्या कविता लिखी हैं आपने दर्द को नई परिभाषा देदी आपने
    आभार

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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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