Saturday, May 11, 2013

बँटवारा Bantwara


चलो समेटो टुकडे
हर घर से
हर कोने से
हर मंदिर से
महलों से झोपड़ियों से
हर गली मोहल्ले गाँव शहर से
फुटपाथों से
पुल के नीचे से
हर एक जगह से जहाँ कभी कोई सोता है

मैं फिर से बांटूंगा तुझको
ऐ आसमान
इस बार बराबर दूंगा।


-- Neeraj Dwivedi


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1 comment:

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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