Sunday, April 7, 2013

तोड़ न पाओगे हौसला हवाओं का Tod Na Paoge Hausala Hawayon ka


खद्दर के कानून से रिश्ते करीबी बहुत हैं
यहाँ नोटों की किस्त से बिकते बहुत हैं।

बिखरती रौशनी  है टूट कर  हर ओर,
हमारे दिल के जज्बात पुख्ता बहुत हैं।

मर रहा  कसमसाकर भारत शनैः शनैः
गद्दारों की रक्षा में तैनात बंदूकें बहुत हैं।

मोमबत्तियाँ चलीं थीं लगा जगे हैं लोग
यहाँ नींद में  चलने वाली भेंड बहुत हैं।

लड़ रहें हैं, करते रहेंगे बूँद बूँद बलिदान,
लहू पानी सा  बहाने वाले लोग बहुत हैं।

तुम तोड़ न  पाओगे हौसला हवाओं का,
बसंती आँधियों की उड़ानों के किस्से बहुत हैं।
- Neeraj Dwivedi

2 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 9/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

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  2. सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...

    आप की ये रचना 12-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
    पर लिंक की जा रही है। आप भी इस हलचल में अवश्य शामिल होना।
    सूचनार्थ।
    आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।

    मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।

    ReplyDelete

प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --

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