खद्दर के कानून से रिश्ते करीबी बहुत हैं
यहाँ नोटों की किस्त से बिकते बहुत हैं।
बिखरती रौशनी है टूट कर हर ओर,
हमारे दिल के जज्बात पुख्ता बहुत हैं।
मर रहा कसमसाकर भारत
शनैः शनैः
गद्दारों की रक्षा में तैनात बंदूकें बहुत हैं।
मोमबत्तियाँ चलीं थीं लगा जगे हैं लोग
यहाँ नींद में चलने वाली भेंड बहुत हैं।
लड़ रहें हैं, करते
रहेंगे बूँद बूँद बलिदान,
लहू पानी सा बहाने
वाले लोग बहुत हैं।
तुम तोड़ न पाओगे हौसला हवाओं का,
बसंती आँधियों की उड़ानों के किस्से बहुत
हैं।
- Neeraj Dwivedi
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 9/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteसुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteआप की ये रचना 12-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। आप भी इस हलचल में अवश्य शामिल होना।
सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।