Wednesday, April 10, 2013

हम ढूंढ़ लायेंगे Ham Dhundh Layenge


लिखने दो आसमां को बंजर जमीं की कहानी लिखने दो,
दहकता सच  सड़े बदबूदार झूंठ की  जुबानी लिखने दो।

हम ढूंढ़ लायेंगे कल तक फलक से चुन चुन हर एक रंग,
बुनने दो  हवाओं को  श्वेत श्याम रंगी गुबार  बुनने दो।

तय कर लो भाव  भले ही  खरीद लो  पन्ने और स्याही,
स्वाभिमानी कलम को रक्त से ही इतिहासों पर चलने दो।

हमारी कलम  किसी की  बपौती नहीं  जो डर  जाएगी,
इसे बेधड़क  खद्दर के सच झूंठ की  कहानी लिखने दो।

लिखने दो जलन सीने में दबी मर चुकी भूख आँतों की,
बिलखती दर्द से  अधिकार को रोती  मुस्कान कहने दो।

देखने दो  वर्तमान को भूत की  शक्ल खुली आँखों से,
भविष्य को  तैयार होने दो  सच पर अधिकार लेने दो।

सड़कों के तले  चोटों संग पले  भारत की कहानी में,
जलने दो हमें, शुद्ध स्वर्ण सा तपकर  तैयार होने दो।

बंद करो लपेटना सच को रगीन पर्दों में बिकाऊ लोगों,
जीवित हैं कुछ हंस नीर को नीर क्षीर को क्षीर करने को।

बातें बनाने से  संकल्पों के अर्थ  खो नहीं  जाया करते,
शब्द शब्द हैं  अक्षुण्य हैं इन्हें सार्थक विन्यास करने दो।
-- Neeraj Dwivedi

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