Friday, April 5, 2013

क्षणिकाएं


1.
बन तो रहे हैं ...
फ़्लैट ...
ईंटों के पत्थरों के ...
रोज ही नए नए ...
तुम सोचते क्या हो ...
बस तोड़ते जाओ ...
हमारे घर ...

­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­2.
जरुरी तो नहीं
किसी के
लफ़्ज दर लफ़्ज
समझ ही आएं ...
सुनाई
कम पड़ता है
आसमां से कह दो
जरा करीब आएं ...
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