मैं गुमसुम था शब्दों में आँसू में अंगारों में,
छेड़ दिया तो टूट गए कुछ भूखे स्वप्न
कतारों में,
भूखे पेटों की नज़रों से जब जब नजर मिली है,
मैंने आशा के सूरज
देखें हैं चन्दा में तारों में।
समझ न आए तो तुम कोशिश मत करना,
ये शब्द नहीं हैं,
समझाने को भी मत कहना मुझसे इनमें,
मेरे अर्थ नहीं हैं,
भर लेना जो जी चाहे तुम समझो जो भी
समझ आए,
पर रखना याद कि इनमें मेरी खुदगर्जी के
सन्दर्भ नहीं है,
आग नहीं बुझने दूँगा सीने में सुलगाता
जाउँगा चिंगारी,
कमर कसो हल को हथियार बनाओ गर
तलवार नहीं है,
आंसू को अंगारे कहने की ताकत मुझमें है
पर शर्त यही है,
जब तक राख नहीं कर लेना मत बुझना
ताजी जलन नहीं है।
ये ताजी जलन नहीं है।
केवल मेरी अगन नहीं है।
नीरज जी की रचना पढ़ी,रचना अभिव्यक्ति के आवेग में थोडा संयम मांगती है | रचना सार्थक उद्देश्य की दिशा में तभी अग्रसर होती है,जब कवि शब्द प्रयोग में युक्तिसंगति का निर्वाह करे |यह कवि का दायित्व और उसका लक्ष्य दोनों होना चाहिए |वैसे एक मशविरा उर्दू में 'ताजा'शब्द ही प्रयुक्त होता है,'ताज़ी' नहीं|पता नहीं इस बात को ब्लॉग के संयोजक जो खुद उर्दू भाषी हैं,कैसे नज़रंदाज़ कर गए ?
ReplyDelete--डॉ.शेखर शंकर मिश्र
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
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