रूठती जा रही है डगर साथ चल,
बीतती जा रही है उमर साथ
चल,
ख्वाव जो भी बुने वो एक एक कर,
टूटते जा रहें तू मगर
साथ चल।
उन्होंने किया हम पे एहसान
जो,
बस हंस के दिया एक फरमान वो,
किसी ने कहा मुझसे बड़ी जिंदगी,
चोट खाना जरूर पर मुस्का के चल।
कह सका वो नहीं जो भी कहने चला,
कर सका वो नहीं जो
मैं करने चला,
उठ गए जो कदम तो मैं चलता गया,
राहें कहने लगीं अब
मुझे छोड़ चल।
मंजिल ने बुलाना फिर भी छोड़ा नहीं,
स्वर्णिम सपने दिखाना छोड़ा
नहीं,
डगमगाए कदम तो मैं गिर ही पड़ा,
उठा भार फिर से, मेरे अरमान चल।
कुछ मिला न मिला एक जिद तो मिली,
कुछ पत्थर तो मिले मंज़िल न मिली,
चोटों ने कहा नीरज तुझे है कसम,
खुद को पाना जरूर तू
इतरा के चल।
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletehttp://voice-brijesh.blogspot.com
sundar abhivayakti
ReplyDeleteआपकी रचना निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।
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